धरती फाड़कर यूं लिया था महादेव ने महाकाल का रूप, जानें महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की रोचक कथा

देशभर में भगवान शिव के लाखों भक्त हैं. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन का सबसे प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर है. ये मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित है. आइए जानते हैं महाकालेश्वर में कैसे स्थापित हुए थे महाकाल.

Mar 2, 2024 - 20:04
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धरती फाड़कर यूं लिया था महादेव ने महाकाल का रूप, जानें महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की रोचक कथा

सनातन धर्म में भगवान शिव की भक्ति के लाखों दिवाने हैं. अन्य देवताओं की तरह भगवान शिव को भी कई नामों से जाना जाता है. शिवा, देवों के देव महादेव, महाकाल, नीलकंठ, भोले भंडारी, शिवाय, शंकर आदि सभी भगवान शिव के नाम हैं. देशभर में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं और सभी का अपना अलग-अलग महत्व है. इन्हीं ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर है. सभी ज्योतिर्लिंग में से ये सबसे प्रसिद्ध है, जो कि मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है. बता दें कि ये मंदिर उज्जैन की शिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ है. आज जानते हैं महाकालेश्वर मंदिर के महत्व और कथा के बारे में.   

उज्जैन में स्थित है महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग 

उज्जैन में स्थिति महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को लेकर मान्यता है कि प्राचीन समय में राजा चंद्रसेन यहां राज्य किया करते थे और वे भगवान शिव के परम भक्त थे. राजा की प्रजा भी महादेव की पूजा किया करती थी. एक बार पड़ोसी राज्य से रिपुदमन ने चंद्रसेन के राज्य पर हमला कर दिया और तभी राक्षस दूषण ने भी प्रजा पर अत्याचार शुरू कर दिए.    

राक्षस से परेशान होकर प्रजा ने भगवान शिव का ध्यान किया और उनसे मदद की गुहार की. तभी उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव धरती चीर कर महाकाल के रूप में प्रकट हो गए और राक्षस का वध कर दिया. ऐसा कहा जाता है कि प्रजा के अनुरोध पर भगवान शिव वहां पर ज्योतिर्लिंग के रूप में हमेशा केलिए वहीं विराजमान हो गए. 

यहां होती है भगवान शिव की खास आरती 

उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा ब्रह्म मुहर्त में होती है. इस दौरान भगवान शिव जी का श्रृंगार भस्म से किया जाता है. और यहां की यही आरती विश्व में प्रसिद्ध है. ऐसी मान्यता है कि भस्म आरती देखे बिना महाकालेश्वर के दर्शन अधूरे माने जाते हैं. वहीं, महिलाओं के लिए भस्म आरती देखना मना है. 

मंदिर में भगवान शिव की आरती के समय पुजारी सिर्फ धोती धारण कर सकते हैं. अब भगवान शिव को शमी वृक्ष, पीपल, पलास और कपिला गाय के गोबर के कंडों से बनी भस्म लगाई जाती है. इतना ही नहीं, महाकाल की शाही सवारी और नागचंद्रेश्वर मंदिर भी यहां का मुख्य आकर्षण का केंद्र है. ऐसा कहा जाता है कि आरती के समय ऐसा महसूस होता है कि भगवान शिव हमारे आस-पास ही हों.  

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