में 'एक देश-एक चुनाव' हुआ तो बचेंगे कितने पैसे? समझ लीजिए पूरा गणित

यह बात सही है कि अगर 'एक देश-एक चुनाव' की प्रक्रिया होती है तो देश का काफी पैसा बचेगा लेकिन यह भी बात मानी जा रही है।

Sep 1, 2023 - 13:42
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में 'एक देश-एक चुनाव' हुआ तो बचेंगे कितने पैसे? समझ लीजिए पूरा गणित

बात सही है कि अगर 'एक देश-एक चुनाव' की प्रक्रिया होती है तो देश का काफी पैसा बचेगा लेकिन यह भी बात मानी जा रही है कि इससे संवैधानिक समन्वय की दिक्क्तें पैदा हो जाएंगी. इसी कड़ी में आइए जानते हैं कि इससे कितना पैसा बचाया जा सकता है

One Nation- One Election: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुला लिया है. यह सत्र 18 से 22 सितंबर तक चलेगा कर सत्र में लगातार पांच बैठकें होंगी. इसी बीच इस सत्र को लेकर सुगबुगाहटों का दौर शुरू हो गया है. कहा जा रहा कि इस दौरान सरकार 'एक देश-एक चुनाव' बिल ला सकती है, अगर ऐसा होता है तो यह बड़ा कदम होगा. इस बात को लेकर चर्चा का दौर तब और गरम हो गया जब केंद्र सरकार ने 'एक देश-एक चुनाव' को लेकर एक कमेटी बना दी और उसका प्रमुख पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नियुक्त कर दिया है. आइए यह जानते हैं कि 'एक देश-एक चुनाव' की चर्चा क्यों है और इससे चुनाव में होने वाले खर्च पर कितनी कटौती होगी.

दरअसल, एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह बात सही है कि अगर 'एक देश-एक चुनाव' की प्रक्रिया होती है तो देश का काफी पैसा बचेगा लेकिन यह भी बात मानी जा रही है कि इससे संवैधानिक समन्वय की दिक्क्तें पैदा हो जाएंगी. बताया जाता है कि अगर एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं. साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से विकास कार्यों पर भी असर नहीं पड़ेगा. इन सबके बीच 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अगस्त 2018 में लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट आई थी.

इस रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होते हैं, तो एक्स्ट्रा खर्च भी कम हो जाएगा. वहीं एक मीडिया रिपोर्ट में सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के हवाले से बताया गया कि 2019 के चुनावों में 55000 करोड़ रुपए का खर्च आया था जो 2016 में अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनावों से भी ज्यादा है. इस चुनाव में हर वोटर पर आठ डॉलर का खर्च आया था जबकि देश में आधी से ज्यादा आबादी रोजाना तीन डॉलर से भी कम पर गुजारा करने को मजबूर है.

इसके अलावा एक बात यह भी इस रिपोर्ट में कही गई कि 1998 से 2019 के बीच चुनावी खर्च में छह गुना बढ़ोतरी हुई है. साल 2022 में चुनाव आयोग ने पांच राज्यों पंजाब, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, गोवा और उत्तराखंड में हुए विधानसभा चुनावों में हुए खर्च के आंकड़े जारी किए, जिनमें बीजेपी ने 340 करोड़ रुपए और कांग्रेस ने 190 करोड़ रुपए खर्च किए थे. इसका मतलब यह हुआ कि यही चुनाव जब एक साथ यानी कि लोकसभा के साथ होंगे तो काफी खर्च बचेगा. और ये वे आंकड़े हैं जो पार्टियों ने चुनाव आयोग के दिए हैं. असली खर्चे इससे ज्यादा हो सकते हैं.

कुल मिलाकर अब देश 'एक देश एक चुनाव; को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई हैं. इसी कड़ी में अब केंद्र सरकार ने इसको लेकर तैयारी तेज कर दी है और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस कमेटी का प्रमुख नियुक्त किया गया है. अब देखना यह होगा कि विपक्षी पार्टियां संसद में इसको लेकर क्या रुख अपनाती हैं और इसमें क़ानून का पेंच कैसे फंसता है.