16 साल की मुस्लिम लड़की किसी मुस्लिम पुरुष से वैध विवाह कर सकती है: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा

Aug 19, 2025 - 10:55
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16 साल की मुस्लिम लड़की किसी मुस्लिम पुरुष से वैध विवाह कर सकती है: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (19 अगस्त) को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका खारिज की। इस याचिका में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के 2022 के उस फैसले को चुनौती दी गई, जिसमें कहा गया था कि 16 साल की मुस्लिम लड़की किसी मुस्लिम पुरुष से वैध विवाह कर सकती है और दंपति को धमकियों से सुरक्षा प्रदान की गई थी। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि NCPCR इस मुकदमे से अनजान है और उसे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है।

खंडपीठ ने पूछा कि NCPCR को धमकियों का सामना कर रहे दंपति के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान करने वाले हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती क्यों देनी चाहिए? खंडपीठ ने कहा, "NCPCR के पास ऐसे आदेश को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है... अगर दो नाबालिग बच्चों को हाईकोर्ट द्वारा संरक्षण प्राप्त है तो NCPCR ऐसे आदेश को कैसे चुनौती दे सकता है... यह अजीब है कि NCPCR, जो बच्चों की सुरक्षा के लिए है, उसने ऐसे आदेश को चुनौती दी।"

NCPCR के वकील ने दलील दी कि वे कानून का सवाल उठा रहे थे कि क्या 18 साल से कम उम्र की लड़की को सिर्फ़ पर्सनल लॉ के आधार पर कानूनी तौर पर शादी करने की योग्यता रखने वाला माना जा सकता है। हालांकि, खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में कानून का कोई सवाल ही नहीं उठता। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "कानून का कोई सवाल ही नहीं उठता, कृपया आप किसी उचित मामले में चुनौती दें।" याचिका खारिज करते हुए खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा: "हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि NCPCR ऐसे आदेश से कैसे व्यथित हो सकता है। अगर हाईकोर्ट, अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए दो व्यक्तियों को संरक्षण प्रदान करना चाहता है तो NCPCR के पास ऐसे आदेश को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है। याचिका खारिज की जाती है।"

खंडपीठ ने NCPCR के वकील के कानून के प्रश्न को खुला रखने का अनुरोध अस्वीकार कर दिया। खंडपीठ ने NCPCR द्वारा हाईकोर्ट द्वारा पारित इसी तरह के अन्य आदेशों को चुनौती देने वाली तीन अन्य याचिकाओं को भी खारिज कर दिया। अक्टूबर, 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कि वह दंपति को दी गई राहत में हस्तक्षेप नहीं कर रहा है, NCPCR की याचिका पर कानून के प्रश्न पर विचार करने के लिए नोटिस जारी किया। कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट राजशेखर राव को मामले में एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया गया। हाईकोर्ट का यह फैसला एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर आया था, जिसने आरोप लगाया कि उसकी प्रेमिका अपने घर में अवैध रूप से कस्टडी में है। साथ ही दावा किया कि वे शादी करना चाहते हैं। हाईकोर्ट ने दंपति को यह कहते हुए सुरक्षा प्रदान की कि लड़की यौवन प्राप्त कर चुकी है। वह मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत विवाह योग्य आयु की है। पूर्व उदाहरणों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि एक मुस्लिम लड़की का विवाह मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित होता है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "जैसा कि ऊपर उद्धृत विभिन्न निर्णयों में निर्धारित किया गया, कानून स्पष्ट है कि एक मुस्लिम लड़की का विवाह मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित होता है। 'सर दिनशाह फरदुनजी मुल्ला द्वारा लिखित 'मोहम्मडन लॉ के सिद्धांत' पुस्तक के अनुच्छेद 195 के अनुसार, याचिकाकर्ता नंबर 2, 16 वर्ष से अधिक आयु की होने के कारण अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ विवाह अनुबंध करने के लिए सक्षम है। याचिकाकर्ता नंबर 1 की आयु 21 वर्ष से अधिक बताई गई। इस प्रकार, दोनों याचिकाकर्ता मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार विवाह योग्य आयु के हैं।" हाईकोर्ट ने कहा कि 'सर दिनशाह फरदुनजी मुल्ला द्वारा लिखित 'मोहम्मडन लॉ के सिद्धांत' पुस्तक के अनुच्छेद 195 के अनुसार, स्वस्थ मस्तिष्क वाला प्रत्येक मुसलमान, जो यौवन प्राप्त कर चुका है, विवाह अनुबंध कर सकता है। इसके अलावा, साक्ष्य के अभाव में पंद्रह वर्ष की आयु पूरी होने पर यौवन मान लिया जाता है। NCPCR की याचिका के अनुसार, हाईकोर्ट का फैसला अनिवार्य रूप से बाल विवाह की अनुमति देता है और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 का उल्लंघन है। इसके अलावा, यह फैसला यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) की भावना के विरुद्ध है, जो धर्मनिरपेक्ष कानून भी है। NCPCR ने तर्क दिया कि इस कानून के अनुसार, 18 वर्ष से कम आयु का कोई भी बच्चा वैध सहमति नहीं दे सकता। जस्टिस नागरत्ना ने सुनवाई के दौरान कहा कि वयस्कता की ओर बढ़ रहे व्यक्तियों के बीच प्रेम संबंधों को अलग तरह से देखा जाना चाहिए।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "POCSO Act है, जो दंडात्मक मामलों को देखता है। हालांकि, ऐसे प्रेम संबंध भी होते हैं, जहां वयस्कता की ओर बढ़ रहे किशोर भाग जाते हैं। जहां वास्तविक प्रेम संबंध होते हैं, वे शादी करना चाहते हैं, ऐसे मामलों को आपराधिक मामलों की तरह न देखें। हमें आपराधिक मामलों और इस मामले में अंतर करना होगा।" जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा, "देखिए, अगर लड़की किसी लड़के से प्यार करती है और उसे जेल भेज दिया जाता है तो उस लड़की को कितनी पीड़ा होती है, क्योंकि उसके माता-पिता भागने को छिपाने के लिए POCSO का मामला दर्ज करा देते हैं।"

 Case Details : NATIONAL COMMISSION FOR PROTECTION OF CHILD RIGHTS (NCPCR) Versus GULAAM DEEN AND ORS.| SLP(Crl) No. 10036/2022, NCPCR vs JAVED AND ORS Diary No. 35376-2022, NCPCR vs FIJA AND ORS SLP(Crl) No. 1934/2023

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