Women's Day Special: पांच दिन में दो बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला की कहानी, नाम अंशु जामसेनपा
अंशु जामसेनपा की यात्रा एक शक्तिशाली और कभी ना भूले जाने वाला कार्य है. उनकी उपलब्धियां अनगिनत महिलाओं को बाधाओं के बावजूद निडरता से अपने सपनों का पीछा करने के लिए प्रेरित करती हैं.
8 मार्च को पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रही है. जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की उपलब्धियों और उनकी मेहनत के सम्मान के साथ ही आगे भी ऐसे ही उनको प्रेरित किया जाए, इस कारण से आज का दिन बड़ा है. वहीं, इस दिन अंशु जामसेनपा की कहानी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जिन्होंने ऊंचे पहाड़ फतह किए. जामसेनपा सिर्फ एक पर्वतारोही नहीं हैं, वे प्रकृति की शक्ति हैं, एक पथप्रदर्शक हैं और दृढ़ निश्चय की प्रतीक हैं.
अरुणाचल प्रदेश की रहने वाली जामसेनपा ने सिर्फ पांच दिनों में दो बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला के रूप में इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया है. 2017 में उनके रिकॉर्ड तोड़ने वाले कारनामे ने उन्हें ऐसा असाधारण मुकाम हासिल करने वाली दुनिया की एकमात्र महिला बना दिया. लेकिन शिखर तक पहुंचने का उनका सफर आसान नहीं था.
एक मां, एक योद्धा, एक पर्वतारोही
एक साहसिक उत्साही और दो बेटियों की समर्पित मां, जमसेनपा की पर्वतारोहण यात्रा 2009 में शुरू हुई जब अरुणाचल पर्वतारोहण और साहसिक खेल संघ के प्रशिक्षकों ने उन्हें इस खेल को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया. हालांकि, सामाजिक मानदंड और जिम्मेदारियां अक्सर चुनौतियां पेश करती थीं. एक महिला और एक मां होने के नाते, उन्हें हर कदम पर मुश्किलों का सामना करना पड़ा. लेकिन जमसेनपा ने सभी बाधाओं को अपनी सीमाओं के आड़े नहीं आने दिया.
उनके गौरव का क्षण 2011 में आया, जब उन्होंने एक बार नहीं, बल्कि 10 दिनों के भीतर दो बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया. 2013 में, वह एक बार फिर शक्तिशाली एवरेस्ट पर लौटीं और अपनी योग्यता साबित की. हालांकि, 2017 में उनकी आश्चर्यजनक दोहरी चढ़ाई थी जहां उन्होंने केवल पांच दिनों में दो बार दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ाई की. ऐसा करके उन्होंने दुनिया में अपना और भारत का नाम रोशन किया. इस उपलब्धि ने उन्हें पांच बार एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला भी बना दिया.
धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ चुनौतियों पर विजय
जामसेनपा के लिए एवरेस्ट फतह करने का रास्ता बिल्कुल भी आसान नहीं था. मुश्किलों का सामना करने से लेकर समर्थन की कमी तक, उन्हें कई चुनौतियों से जूझना पड़ा.
दिग्गज पर्वतारोही ने अपने दृढ़ संकल्प की उल्लेखनीय यात्रा के बारे में जानकारी साझा की. मीडिया से बात करते हुए, उन्होंने पर्वतारोहण के अपने जुनून को आगे बढ़ाने के दौरान आने वाले संघर्षों को याद किया. समाचार एजेंसी ANI से बात करते हुए उन्होंने याद किया, 'मेरी यात्रा 2010 में शुरू हुई. शुरुआत में, मुझे कोई समर्थन नहीं मिला, लेकिन मैंने धीरे-धीरे अपने परिवार को अपनी मेहनत से मना लिया... उस समय, मुझे नहीं पता था कि पर्वतारोहण क्या है... लेकिन एक बार जब मैं इससे परिचित हो गई, तो मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.'
सशक्तिकरण का उनके लिए क्या मतलब है?
सशक्तिकरण के वास्तविक सार के बारे में बोलते हुए, जामसेनपा इस बात पर जोर देती हैं कि यह एक गहरा व्यक्तिगत अनुभव है. उन्होंने कहा कि कुछ के लिए यह शिक्षा है जबकि अन्य के लिए यह आर्थिक स्वतंत्रता है. हालांकि, वह इस बात पर निराशा व्यक्त करती हैं कि कई सशक्त महिलाओं को अभी भी अपने जीवन के फैसले लेने में स्वतंत्रता की कमी का सामना करना पड़ता है. साथ ही, जामसेनपा का यह भी मानना है कि असली सशक्तिकरण भीतर ही है. उन्होंने कहा, 'अगर आप आत्मविश्वासी हैं और खुद पर विश्वास करते हैं, तो आप सशक्त हैं.'
प्रेरणा की विरासत
जामसेनपा की यात्रा जुनून और दृढ़ निश्चयी भावना की शक्ति का प्रमाण है. उन्होंने न केवल भारत को गौरव दिलाया है, बल्कि उन अनगिनत युवा लड़कियों और महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत भी हैं, जो बाधाओं को तोड़ने का सपना देखती हैं. उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि सीमाएं केवल मन में होती हैं और साहस के साथ असंभव भी संभव हो जाता है.
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