जानें क्या होता है ध्वज स्तंभ? कब से शुरू हुई परंपरा, क्यों होता है मंदिर के लिए जरूरी?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कोई भी मंदिर ध्वज, झंडा, पताका के बिना अधूरा होता है. कहा जाता है कि ध्वज के बिना मंदिर में असुर का वास होता है और ये ध्वज मंदिर की रक्षा करता है.
मद्रास हाई कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु सरकार के हिंदू मंदिरों में एक बोर्ड लगाने का निर्देश दिया है. जिसमें लिखा हो कि गैर-हिंदुओं को मंदिरों में ‘कोडिमारम’ (ध्वजस्तंभ) क्षेत्र से आगे जाने की अनुमति नहीं है. अदालत ने कहा कि हिंदुओं को भी अपने धर्म को मानने और उसका पालन करने का अधिकार है. इसी के चलते आज हम आपको बताएंगे की ध्वज स्तंभ क्या होता है और ये मंदिर के लिए क्यों जरूरी होता है.
जीत का प्रतीक
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कोई भी मंदिर ध्वज, झंडा, पताका के बिना अधूरा होता है. कहा जाता है कि ध्वज के बिना मंदिर में असुर का वास होता है और ये ध्वज मंदिर की रक्षा करता है. झंडे का रंग, प्रतीक मंदिर के अनुरूप किया जाता है. हिन्दू धर्म के अलावा झंडा फहराना जीत के प्रतीक के रूप में माना जाता है. झंडा केवल सजावट के लिए नहीं बल्कि जीत का भी प्रतीक है. माना जाता है कि ध्वज वहां फहराया जाता है जहां अज्ञानता, अहंकार, ईर्ष्या और इच्छाओं के आगे आध्यात्मिकता, भक्ति की जीत हुई है
कब शुरू हुई परंपरा?
माना जाता है कि प्राचीन काल में जब देवी-देवताओं और असुरों के बीच युद्ध होते थे तो उस समय रथ पर जो चिन्ह लगाए थे वो कालांतर में ध्वज बन गए. तभी से मंदिर, घर पर भी ध्वज लगाने की प्रथा की शुरुआत हुई. ये भी कहा जाता है कि ध्वज केवल मंदिर नहीं बल्कि पूरे नगर की रक्षा करता है.
क्या है सही दिशा?
सनातन धर्म में ध्वज को विजय का प्रतीक माना गया है. ध्वज स्तंभ लगाने के लिए कुछ नियम बताए गए हैं. ध्वजा को घर में हमेशा सबसे ऊपर वायव्य कोण में लगाना चाहिए. वायव्य कोण में लगा ध्वज स्तंभ काफी शुभ माना जाता है.
घर पर कैसा ध्वज लगाएं
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक घर की छत पर स्वास्तिक या ॐ लिखा हुआ त्रिभुजाकार केसरिया ध्वज लगाना काफी शुभ माना जाता है. माना जाता है कि इस झंडे में सूर्य की किरणें होती हैं जिससे अंधकार, नकारात्मकता का नाश होता है.
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