पोखरण न्यूक्लियर टेस्ट में अहम रोल निभाने वाले आर चिदंबरम का 88 वर्ष की उम्र में निधन

चिदंबरम ने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज और बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान में पढ़ाई की. अपने शानदार करियर में उन्होंने कई प्रमुख पदों पर कार्य किया, जिनमें भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के निदेशक, परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष और भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार शामिल हैं.

Jan 4, 2025 - 14:46
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पोखरण न्यूक्लियर टेस्ट में अहम रोल निभाने वाले आर चिदंबरम का 88 वर्ष की उम्र में निधन

मशहूर परमाणु वैज्ञानिक और भौतिकविद् डॉ. राजगोपाला चिदंबरम का 88 वर्ष की आयु में शनिवार को निधन हो गया. परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) ने बताया कि डॉ. चिदंबरम 1974 और 1998 के भारत के परमाणु परीक्षणों में अहम भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक थे. उन्होंने मुंबई के जसलोक अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली. डीएई ने बयान में कहा, "भारत के सबसे मशहूर वैज्ञानिकों में से एक, डॉ. चिदंबरम के अद्वितीय योगदान और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में उनके नेतृत्व को हमेशा याद किया जाएगा."

आरंभिक जीवन और शिक्षा

1936 में जन्मे डॉ. चिदंबरम ने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज और बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान में पढ़ाई की. अपने शानदार करियर में उन्होंने कई प्रमुख पदों पर कार्य किया, जिनमें भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के निदेशक, परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष और भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (2001-2018) शामिल हैं. उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया.

भारत के परमाणु कार्यक्रम में भूमिका

डॉ. चिदंबरम ने 1974 में भारत के पहले परमाणु परीक्षण और 1998 के पोखरण-II परीक्षणों में निर्णायक भूमिका निभाई. इन परीक्षणों ने भारत को वैश्विक मंच पर एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया. उनके नेतृत्व में डीएई की टीम ने परमाणु अनुसंधान और विकास में कई मील के पत्थर स्थापित किए. उच्च दबाव भौतिकी, क्रिस्टलोग्राफी, और सामग्री विज्ञान में उनके शोध ने विज्ञान के इन क्षेत्रों में नई समझ विकसित की और भारत में आधुनिक सामग्री विज्ञान अनुसंधान की नींव रखी.

तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति में योगदान

डॉ. चिदंबरम ने भारत में सुपरकंप्यूटर के स्वदेशी विकास और राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क की शुरुआत में महत्वपूर्ण योगदान दिया. यह नेटवर्क देशभर के अनुसंधान और शैक्षणिक संस्थानों को जोड़ने में सहायक बना. उन्होंने ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवा, और रणनीतिक आत्मनिर्भरता जैसे क्षेत्रों में नई परियोजनाओं की शुरुआत की, जो भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में मील का पत्थर साबित हुईं.

पुरस्कार और सम्मान

डॉ. चिदंबरम को 1975 में पद्म श्री और 1999 में पद्म विभूषण सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें कई विश्वविद्यालयों से मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त हुई, और वे भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों के फेलो भी थे. विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से राष्ट्रीय विकास को प्रोत्साहित करने के उनके प्रयासों ने उन्हें एक दूरदर्शी नेता के रूप में स्थापित किया.

एक अपूरणीय क्षति

डीएई के सचिव अजीत कुमार मोहंती ने उनके निधन को राष्ट्र के लिए अपूरणीय क्षति बताया. उन्होंने कहा, "डॉ. चिदंबरम के योगदान ने भारत की परमाणु क्षमता और रणनीतिक आत्मनिर्भरता को बढ़ाया. उनका निधन वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक गहरा आघात है." राष्ट्र ने एक सच्चे दूरदर्शी को खो दिया है, और इस दुखद घड़ी में उनके परिवार और प्रियजनों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त की गई. 

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