सुप्रीम कोर्ट ने पावर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा सेल डीड के रजिस्ट्रेशन पर उठाए सवाल, मामला बड़ी पीठ को सौंपा
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 15 जुलाई को महत्वपूर्ण कानूनी सवाल पर विचार करते हुए यह तय करने का मामला लार्ज बेंच को भेज दिया कि क्या पावर ऑफ अटॉर्नी (PoA) धारक बिना अतिरिक्त प्रमाणीकरण के सेल डीड को निष्पादक (Executant) के रूप में रजिस्ट्रेशन के लिए प्रस्तुत कर सकता है। जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंड़पीठ ने वर्ष 2009 के निर्णय राजनी टंडन बनाम दुलाल रंजन घोष दस्तिदार से असहमति जताई। इस फैसले में कहा गया था कि पावर ऑफ अटॉर्नी धारक ही सेल डीड का निष्पादक बन जाता है। उसे रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 के तहत किसी और प्रमाणीकरण की आवश्यकता नहीं होती।
वर्तमान कंडपीठ ने कहा कि अधिनियम की धारा 33 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति PoA के तहत दस्तावेज़ प्रस्तुत करता है तो उसे उस पावर ऑफ अटॉर्नी के प्रमाणीकरण की प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है। साथ ही धारा 34(3)(a) के तहत रजिस्ट्रार को यह सुनिश्चित करना होता है कि दस्तावेज़ सही व्यक्ति द्वारा निष्पादित किया गया या नहीं। खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि PoA धारक केवल अपने प्राधिकर्ता की ओर से दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करता है खुद निष्पादक नहीं बनता। इसलिए वह अधिनियम की धारा 32(c) 33, 34 और 35 के अधीन प्रक्रिया पूरी करने का दायित्व रखता है।
कोर्ट ने राजनी टंडन मामले की व्याख्या को भ्रामक करार देते हुए कहा कि इससे संपत्ति के लेनदेन में दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाती है और संपत्ति पंजीकरण प्रक्रिया की पारदर्शिता पर असर पड़ता है। इस केस में यह विवाद था कि PoA धारक ने रणवीर सिंह और ज्ञानू बाई की ओर से सेल डीड निष्पादित किया लेकिन बाद में दोनों ने इस अधिकार देने से इनकार कर दिया। इस परिस्थिति में न्यायालय ने यह माना कि रजिस्ट्रार को PoA धारक की पहचान और उसकी प्रामाणिकता की पुष्टि करना अनिवार्य था।
अंततः कोर्ट ने इस मुद्दे पर कोई अंतिम निर्णय नहीं दिया और मामले को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को यह कहकर भेजा कि यह विवाद बड़ी पीठ द्वारा निर्णीत किया जाना चाहिए। खंडपीठ ने कहा, “सिर्फ दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने से कोई PoA धारक निष्पादक नहीं बन जाता, वह केवल अपने प्राधिकर्ता का एजेंट रहता है। ऐसे में उसे सभी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करनी होंगी।” कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह चीफ जस्टिस से इस मामले को उपयुक्त पीठ के समक्ष शीघ्र सूचीबद्ध कराने के आदेश प्राप्त करें।
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