8 भारतीयों के सामने अब क्या है लीगल ऑप्शन, कतर में मौत की सजा कम होने के बाद क्या है विकल्प

कतर की जेल में बंद भारतीय नौसेना के 8 पूर्व अफसरों की मौत की सजा को स्थानीय अपील कोर्ट ने गुरुवार को टाल दिया. विदेश मंत्रालय ने कहा कि सभी भारतीय कैदियों की सजा को कम कर दिया गया है. आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि कतर में इन भारतीय कैदियों के सामने अब क्या-क्या कानूनी विकल्प मौजूद हैं?

Dec 28, 2023 - 14:02
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8 भारतीयों के सामने अब क्या है लीगल ऑप्शन, कतर में मौत की सजा कम होने के बाद क्या है विकल्प

खाड़ी देश कतर में कथित तौर पर जासूसी के आरोप में जेल में बंद भारतीय नौसेना (Indian Navy) के 8 पूर्व अधिकारियों की फांसी की सजा पर गुरुवार को रोक लगा दी गई है. कतर की एक अपील कोर्ट के आदेश के मुताबिक भारतीय कैदियों की मौत की सजा कम कर दी गई है. अब इन भारतीय कैदियों को जेल में रहना होगा. इन सबको कतर की जेल में कितने समय तक रहना होगा जैसे सवालों पर अपील कोर्ट बाद में विस्तार से फैसला करेगा. भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस कूटनीतिक कामयाबी की पुष्टि की है.

कतर की जेल में भारत के पूर्व नौसैनिकों को मौत की सजा का मामला क्या है 

26 अक्टूबर, 2023 को इंडियन नेवी के 8 पूर्व अफसरों को कतर की कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी. कतर इंटेलिजेंस एजेंसी ने 30 अगस्त 2022 को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया था. सितंबर, 2023 में भारतीय दूतावास को इसकी सूचना मिली. कई बार दाखिल की गई कैदियों की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया गया था. हालांकि अब कतर के सुर नरम पड़े और अपील कोर्ट ने भारतीय कैदियों को मिली मौत की सजा पर रोक लगा दी. कतर में जारी कानूनी मामले को लेकर विदेश मंत्रालय ने बताया कि मंत्रालय के अधिकारी और लीगल टीम भारतीय कैदियों के परिवारों के संपर्क में हैं. पीड़ितों को भारत की ओर से कानूनी सहायता दी जा रही है. हम कतर के प्रशासनिक आधिकारियों के सामने इस काफी संवेदशील मामले को उठाते रहेंगे. फिलहाल इस पर ज्यादा टिप्पणी करना ठीक नहीं होगा. 

कतर की कोर्ट ऑफ अपील के फैसले की डीटेल्स का इंतजार- विदेश मंत्रालय

विदेश मंत्रालय ने कहा कि फिलहाल कतर की कोर्ट ऑफ अपील के फैसले की डीटेल्स का इंतजार है. इसके मिलने के बाद ही अगले कदम पर विचार किया जाएगा. जानकारी के मुताबिक, ‘दाहरा ग्लोबल केस’ में सुनवाई के दौरान कतर की कोर्ट में भारत के एम्बेसडर और दूसरे बड़े अफसर मौजूद थे. उनके साथ सभी 8 कैदियों के परिवारों के लोग भी अदालत में थे. इन कैदियों की पैरवी के लिए भारत सरकार ने स्पेशल काउंसिल नियुक्त किए थे. आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि कतर की जेल में बंद 8 भारतीय पूर्व अफसरों की मौत की सजा पर रोक के बाद अब उनके लिए क्या-क्या कानूनी विकल्प मौजूद हैं?

भारत और कतर के बीच सजायाफ्ता लोगों के स्थानांतरण पर 2014 में हुई संधि

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिसंबर, 2014 में भारत और कतर के बीच सजायाफ्ता व्यक्तियों के स्थानांतरण पर संधि पर हस्ताक्षर को मंजूरी दी थी. संधि पर दस्तखत होने से कतर या कतर में कैद भारतीय कैदियों को अपनी सजा की बाकी अवधि काटने के लिए अपने परिवारों के पास रहने की सुविधा मिलेगी और उनके सामाजिक पुनर्वास में सुविधा होगी. इस समझौते के तहत भारत यहां के कैदियों को कतर से लाने की कोशिश कर सकता है.

साल 2004 से पहले ऐसा कोई घरेलू कानून नहीं था जिसके तहत विदेशी कैदियों को उनकी सजा की शेष अवधि काटने के लिए उनके मूल देश में स्थानांतरित किया जा सके, न ही किसी विदेशी अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए भारतीय मूल के कैदियों को उनके मूल देश में सजा काटने के लिए स्थानांतरित करने का प्रावधान था. इसलिए इस मकसद को पूरा के लिए कैदी प्रत्यावर्तन अधिनियम, 2003 लागू किया गया था. इस अधिनियम के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए भारत के साथ पारस्परिक हित रखने वाले देशों के साथ एक संधि या समझौते पर हस्ताक्षर करना जरूरी है. बाद में इसे आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित किया जाना आवश्यक है. 

कतर की सर्वोच्च अदालत यानी कोर्ट ऑफ कंसेशन में जाने का विकल्प

भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारियों के मामले में कतर में निचली अदालत यानी ‘कोर्ट ऑफ फर्स्ट इन्सटेंस’ ने मौत की सजा सुनाई थी. उस समय फैसला भी गोपनीय रखा गया. तब इसे सिर्फ आरोपियों की लीगल टीम के साथ साझा किया गया था. भारत सरकार और इन पूर्व नौसैनिकों के परिवारों ने इसके बाद निचली अदालत के फैसले को कतर के कोर्ट ऑफ अपील (हाई कोर्ट) में चैलेंज किया, जिसने मौत की सजा को जेल की सजा में बदल दिया. हालांकि, इसकी मियाद के बारे में जानकारी बाद में दी जाएगी. कतर की सर्वोच्च अदालत 'कोर्ट ऑफ कंसेशन' में जाने का कानूनी विकल्प खुला हुआ है. कतर की इस सुप्रीम कोर्ट में जेल की सजा को भी चुनौती दी जा सकती है. सुनवाई के बाद ये अदालत पूरी सजा भी माफ कर सकती है.

कतर के अमीर से तमीम बिन हमाद अल थानी से माफी की मौका

कतर की सुप्रीम कोर्ट यानी 'कोर्ट ऑफ कंसेशन' से भी सजा खत्म नहीं होने की सूरत में भारतीय कैदियों के लिए एक और कारगर कानूनी विकल्प मौजूद है. दरअसल, कतर के नेशनल डे (18 दिसंबर) को अमीर यानी चीफ रूलर कई आरोपियों और दोषियों की सजा माफ करते हैं. इसके अलावा रमजान और ईद के मौके पर भी अमीर इस तरह का फैसला करते हैं. कैदियों के परिजनों की दया याचिका पर कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमाद अल थानी सजा को माफ कर सकते हैं. दुबई में 1 दिसंबर को COP28 समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमाद अल थानी से मुलाकात के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा था, 'दुबई में कतर के अमीर से मुलाकात हुई. मैंने उनसे कतर में रहने वाले भारतीय नागरिकों के हालचाल जाने.' हालांकि, पीएम मोदी ने कतर की जेल में बंद आठ पूर्व भारतीय नौसैनिकों का इशारों में ही जिक्र किया था.

कतर के साथ अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का डिप्लोमेटिक कदम

कतर में मौजूद भारत के एम्बेसडर निपुल ने 3 दिसंबर को आठों पूर्व नौसैनिकों से मुलाकात की थी. तब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इसकी जानकारी दी थी. इससे पहले 30 अक्टूबर को इन पूर्व नौसैनिकों के परिवारों ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की थी. इसके बाद चर्चा हुई थी कि कतर के शाही परिवार के साथ तुर्किये के अच्छे संबंध हैं. इसलिए भारत सरकार मध्यस्थता के लिए तुर्किये को अप्रोच कर सकती है. इसके अलावा कतर के मामले में मदद के लिए अमेरिका से भी भारत सरकार बात कर सकती है. क्योंकि रणनीतिक तौर पर कतर पर अमेरिका की ज्यादा मजबूत पकड़ है. हालांकि, इस मामले में सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया था. 

क्या है अंतरराष्ट्रीय कानून, इटली और पकिस्तान को लेकर कैसा था एक्शन

अंतरराष्ट्रीय कानून के जानकारों के मुताबिक भारत इस मामले में भी इटली मरीन्स केस में अपनाए गए अंतरराष्ट्रीय कानूनों, समुद्री क्षेत्र अधिनियम 1976, भारतीय दंड संहिता और संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) 1982 के तहत लड़ाई लड़ सकता है. UNCLOS साल 1982 में निर्धारित एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो दुनियाभर के समुद्रों और महासागरों के इस्तेमाल के लिए नियामक ढांचा मुहैया कराती है. हालांकि इसमें देशों की संप्रभुता से जुड़े मामलों, सामुद्रिक क्षेत्रों के उपयोग और अधिकारों का निर्धारण और देशों के नौसैनिक अधिकारों के लिए भी प्रावधान है. भारत अगर इसके भाग XV की दलील देता है तो कतर के साथ मामला या तो जर्मनी स्थित इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर द लॉ में जाएगा या इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में मामले की सुनवाई होगी. इसमें एक विकल्प आपस में विवाद सुलझाने यानी मध्यस्थता का भी है.

इंटरनेशनल कॉन्वेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स को प्रावधान क्या हैं

दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय कानून और इंटरनेशनल कॉन्वेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स (ICCPR) के प्रावधानों के मुताबिक कुछ मामलों को छोड़कर फांसी की सजा नहीं दी जा सकती है. इसके आदार पर आगे बढ़ने से पूर्व नौसैनिकों की फांसी रूक सकती है, लेकिन उन्हें छोड़ने या नहीं छोड़ने का फैसला कतर का ही होगा. कुलभूषण जाधव केस में पाकिस्तान के खिलाफ भारत ने यह कानूनी तरीका अपनाया था. एक और विकल्प कतर पर राजनयिक या अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना भी हो सकता है, जिससे 8 भारतीयों को बचाया जा सकता है. 

गाढ़े वक्त में कतर की मदद में भारत ने बढ़ाया था हाथ, अपना सकते हैं कूटनीतिक तरीका 

इसके अलावा इस संवेदनशील मामले को कूटनीतिक तरीके से भी सुलझाया जा सकता है. साल 2017 में भारत ने कतर की तब मदद की थी जब बहरीन, मिस्र, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देशों ने आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाकर उससे अपने राजनयिक संबंध खत्म कर लिए थे. इसके कारण आयात-निर्यात के लिए उसे सुदूर बंदरगाहों का इस्तेमाल करने पर मजबूर कतर गंभीर संकट से गुजर रहा था. तब वहां गंभीर खाद्य संकट को देखकर भारत सरकार ने भारत-कतर एक्सप्रेस सेवा नामक समुद्री आपूर्ति लाइन के जरिए कतर की मदद की थी. खाने-पीने के सामानों के लिए भी कतर भारत पर निर्भर है. वहीं भारत कतर से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात करता है.

इंडियन नेवी के 8 पूर्व अफसर, जिनकी मौत की सजा पर कतर में लगी रोक

1. कैप्टन नवतेज सिंह गिल: चंडीगढ़ के कैप्टन नवतेज सिंह गिल के पिता आर्मी के रिटायर्ड अफसर हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक वह देश के मशहूर डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज वेलिंगटन, तमिलनाडु में इंस्ट्रक्टर रह चुके हैं. 

2. कमांडर पूर्णेंदु तिवारी: नेवी के टॉप ऑफिसर रह चुके पूर्णेंदु तिवारी नेविगेशन के एक्सपर्ट हैं. युद्धपोत INS 'मगर' को कमांड करते थे. दाहरा कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर रिटायर्ड कमांडर पूर्णेंदु तिवारी को भारत और कतर के बीच द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने को लेकर जाना जाता है. इन सेवाओं के लिए साल 2019 में उन्हें प्रवासी भारतीय सम्मान मिला था. वह आर्म्ड फोर्सेज के इकलौते शख्स हैं जिन्हें यह सम्मान दिया गया था.

3. कमांडर सुगुनाकर पकाला: विशाखापट्‌टनम के रहने वाले 54 साल के सुगुनाकर पकाला का नौसैनिक के तौर पर शानदार कार्यकाल रहा है. 18 साल की उम्र में ही नेवी जॉइन करने वाले सुगुनाकर नवंबर 2013 में रिटायर हुए थे. उन्होंने इसके बाद कतर की कंपनी अल दाहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज एंड कंसल्टेंसी को जॉइन किया था.

4. कमांडर संजीव गुप्ता: गनरी स्पेशलिस्ट के तौर पर मशहूर संजीव गुप्ता नेवी में अपनी यूनिट के ऑपरेशन हेड रह चुके हैं.

5. कमांडर अमित नागपाल: अमित नागपाल को इंडियन नेवी में कम्युनिकेशन और इलेक्ट्रॉनिक वॉर सिस्टम के एक्सपर्ट के तौर पर जाना जाता है.

6 .कैप्टन सौरभ वशिष्ठ: तेज-तर्रार टेक्निकल ऑफिसर के तौर पर कैप्टन सौरभ वशिष्ठ ने कई मुश्किल ऑपरेशन को अंजाम दिया है.

7. कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा: नेविगेशनल एक्सपर्टिज के लिए कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा को पहचाना जाता है.

8. नाविक रागेश: इंडियन नेवी में मेनटेनेंस और हेल्पिंग हैंड के रूप में काम करने वाले नाविक रागेश अपने सीनियर्स के पसंदीदा रहे हैं.