सांप्रदायिक सद्भाव के लिए बाल ठाकरे ने मुस्लिम नेता के साथ बसाया था जो इलाका, वहां जहर किसने घोला? जानिए कहानी 'नया नगर' की
मुंबई की नया नगर कॉलोनी को कभी सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल कहा जाता है. लेकिन अब वहां नफरत का घोल घुल चुका है. आखिर किसने यह जहर घोला है. इसका जिम्मेदार कौन है.
शिवसेना सुप्रीमो रहे बाल ठाकरे ने सांप्रदायिक सद्भाव के लिए मुस्लिम नेता के साथ मुंबई के पास जो इलाका बसाया था, वहां अब नफरत का साया छाया हुआ है. हिंदुओं के जुलूस पर पथराव करने के आरोप में सरकार के बुल्डोजर गरज रहे हैं और जगह-जगह फैले एनक्रोचमेंट को ध्वस्त किया जा रहा है. इस घटनाक्रम के बाद हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे को शक की नजरों से देख रहे हैं. तनाव फैलने से रोकने के लिए पूरे इलाके में भारी पुलिस फोर्स तैनात है और जगह-जगह बैरिकेडिंग लगाई गई है. लोगों के आई कार्डों की जांच की जा रही है. आखिर अमन का प्रतीक कहे जाने वाले इस इलाके में जहर किसने घोल दिया. कौन है इसके पीछे का विलेन, जिसने वहां की शांति छीन ली. आज हम सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक कहे जाने वाले 'नया नगर' में फैलती नफरत के बारे में बताने जा रहे हैं.
दलदली इलाके पर बनाई मुस्लिम कॉलोनी
मुंबई के उपनगर मीरा रोड में मौजूद नया नगर पहले एक दलदली इलाका हुआ करता था. रियल एस्टेट डेवलपर सैयद नज़र हुसैन की नजर इस जमीन पर पड़ी तो उन्होंने इस दलदली क्षेत्र को विकसित करके मुस्लिम बहुल नियोजित आवासीय क्षेत्र में बदलने का फैसला किया. इस काम में उन्हें तत्कालीन सरकारों का भी साथ मिला. आखिरकार वे धीरे-धीरे उस इलाके में मुस्लिम कॉलोनियों का विकास करते चले गए. मुस्लिम बाहुल्य इलाका होने की वजह से उन्हें 'मिनी-पाकिस्तान' बनाने की साजिशकर्ता भी कहा गया.
ठाकरे और बनातवाला ने किया शिलान्यास
वर्ष 1979 में कॉलोनी का शिलान्यास करने के लिए शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के चीफ जीएम बनातवाला वहां पहुंचे. उस दौर में शिवसेना बंबई नगर निगम की सत्ता हासिल करने के लिए सबकुछ करने को तैयार थी. उसने मुस्लिम लीग के साथ भी गुपचुप सहमति बना ली थी. जिसकी वजह से लीग के पार्षद मेयर के चुनाव के लिए शिवसेना उम्मीदवार का समर्थन कर रहे थे.
बाद में शिवसेना और IUML का रिश्ता पहले जैसा नहीं रहा. इसके बावजूद नया नगर में सांप्रदायिक सद्भाव कायम रहा. वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद मुंबई समेत देशभर में तनाव फैला, लेकिन उस कॉलोनी में शांति छाई रही.
दंगों में भी नहीं टूटी एकता की डोर
मुंबई में वर्ष 1993 में हुए बम विस्फोटों और उसके बाद फैले दंगों के बाद कई मुस्लिम परिवार इस कॉलोनी में आकर बसे, जिससे वहां प्रॉपर्टी के दाम और उछल गए. वक्त के साथ वहां पर बहुत सारे ढाबे और रेस्टोरेंट भी खुल गए, जिसके चलते उसे भोजन का हब भी कहा जाने लगा. वक्त के साथ हिंदू भी कॉलोनी में बसते चले गए. इस दौरान दोनों पक्षों में शांति बनी रही. वर्ष 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक मीरा रोड नगर निगम की कुल आबादी 8 लाख से अधिक थी. इसमें से 16% मुस्लिम थे, जिनमें से अधिकांश नया नगर के आसपास के रहने वाले थे
बीजेपी का रहा है एकछत्र राज
पुनर्सीमांकन के बाद वर्ष 2009 में मीरा भायंदर नाम से नई असेंबली सीट का गठन किया गया. इसके बाद से बीजेपी का उस पर कब्जा रहा है. चाहे असेंबली सीट की बात हो या फिर नगर निगम की, दोनों जगह बीजेपी का एकछत्र राज चलता रहा है.
रामभक्तों पर पथराव से खराब हुआ माहौल
यह इलाका इससे पहले उस समय सुर्खियों में आया था, जब 2006 के मुंबई ट्रेन विस्फोटों के तीन आरोपी, जिन्हें बाद में दोषी ठहराया गया था. वे नया नगर कॉलोनी के निवासी पाए गए ते. हालांकि इस सजा के बाद भी कॉलोनी में शांति बनी रही. अब राम भक्तों पर पथराव और उसके बाद सरकारी कार्रवाई से वहां पर तनाव मिश्रित घबराहट है. मीरा रोड के लोग कहते हैं कि इससे पहले नया नगर में शायद ही कोई सांप्रदायिक झगड़ा हुआ हो लेकिन अब वह परंपरा टूट गई.
अब लोग संयम खोने पर जता रहे अफसोस
कई लोगों का आरोप है कि जुलूस में शामिल कई लोग उत्तेजक नारे लगा रहे थे. जिसके बाद कॉलोनी के रहने वाले लोगों ने आपा खो दिया. अगर वे उस संयम बनाए रखते तो न उनकी दुकानें टूटती और न ही घर ध्वस्त होते. उस 10 मिनट के गुस्से ने इलाके के लोगों के लिए भारी नुकसान कर दिया. अब इलाके में जगह-जगह बैरिकेड लगे हैं, जहां पुलिस लोगों को आई कार्ड देखकर एंट्री दे रही है. लग ही नहीं रहा कि यह वही इलाका है, जहां सभी लोग बरसों से एक साथ रहते आए हैं.
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