PMLA की अवधारणा आरोपी को किसी तरह जेल में नहीं रखना: सुप्रीम कोर्ट ने ED से कहा
सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में आरोपी आईएएस अधिकारी को जमानत देते हुए कहा कि PMLA के प्रावधानों का दुरुपयोग किसी व्यक्ति को जेल में रखने के लिए नहीं किया जा सकता।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ कथित छत्तीसगढ़ शराब घोटाले से जुड़े PMLA मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर विचार कर रही थी।
जस्टिस ओक ने कहा कि आरोपी को 8 अगस्त, 2024 को गिरफ्तार किया गया और तब से वह हिरासत में है, जबकि हाईकोर्ट ने शिकायत पर संज्ञान लेते हुए सेशन कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया था।
जस्टिस ओका ने मौखिक रूप से कहा:
"PMLA की अवधारणा यह सुनिश्चित करने की नहीं हो सकती कि कोई व्यक्ति जेल में ही रहे। मैं आपको स्पष्ट रूप से बता दूं, कई मामलों को देखते हुए 498ए मामलों में क्या हुआ, अगर ED का यही दृष्टिकोण है। बहुत गंभीर अपराध, लेकिन अगर प्रवृत्ति यह है कि संज्ञान रद्द होने के बाद भी व्यक्ति को किसी तरह जेल में ही रखा जाए तो क्या कहा जा सकता है?
प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस राजू ने पीठ को सूचित किया कि संज्ञान के आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया गया कि सरकार से मंजूरी नहीं ली गई। इसलिए नहीं कि कोई अपराध नहीं बनता। अपीलकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा पेश हुईं।
जस्टिस ओक ने कहा,
"हम किस तरह के संकेत दे रहे हैं? संज्ञान लेने का आदेश रद्द किया जाता है- हो सकता है कि किसी भी आधार पर, और व्यक्ति अगस्त 2024 से हिरासत में है। यह सब क्या है?"
खंडपीठ ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि संज्ञान आदेश रद्द होने के बाद उसकी हिरासत जारी नहीं रखी जा सकती।
अदालत ने कहा कि यदि जमानत की शर्तों का उल्लंघन किया जाता है, तो अधिकारियों को जमानत रद्द करने के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता दी जाती है।
केस टाइटल: अरुण पति त्रिपाठी बनाम प्रवर्तन निदेशालय | एसएलपी (सीआरएल) संख्या 16219/2024
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