S.498A IPC | पारिवारिक संबंधों को आपराधिक कार्यवाही के अंतर्गत लाने की मांग किए जाने पर न्यायालयों को सतर्क रहना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

Feb 8, 2025 - 12:11
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S.498A IPC | पारिवारिक संबंधों को आपराधिक कार्यवाही के अंतर्गत लाने की मांग किए जाने पर न्यायालयों को सतर्क रहना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान अपीलकर्ताओं के खिलाफ क्रूरता, दहेज की मांग और घरेलू हिंसा के आपराधिक आरोपों को खारिज करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि विशिष्ट आरोपों और विश्वसनीय सामग्रियों के बिना घरेलू विवादों में आपराधिक कानूनों को लागू करना परिवारों के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकता है।

"घरेलू रिश्ते, जैसे कि परिवार के सदस्यों के बीच गहराई से निहित सामाजिक मूल्यों और सांस्कृतिक अपेक्षाओं द्वारा निर्देशित होते हैं। इन रिश्तों को अक्सर पवित्र माना जाता है, जो अन्य सामाजिक या व्यावसायिक संबंधों की तुलना में उच्च स्तर के सम्मान, प्रतिबद्धता और भावनात्मक निवेश की मांग करते हैं।

उपर्युक्त कारण से पारिवारिक संबंधों के संरक्षण पर हमेशा जोर दिया गया।

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस नोंगमईकापम कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने कहां 

"इस प्रकार, जब पारिवारिक रिश्तों को पारिवारिक बंधन को तोड़ने वाली आपराधिक कार्यवाही के दायरे में लाने की कोशिश की जाती है तो अदालतों को सतर्क और विवेकपूर्ण होना चाहिए और आपराधिक प्रक्रिया को केवल तभी लागू करने की अनुमति देनी चाहिए, जब समर्थन सामग्री के साथ विशिष्ट आरोप हों जो स्पष्ट रूप से आपराधिक अपराध का गठन करते हैं।"

यह आपराधिक मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 506 और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4 के तहत अपराधों के लिए था। अपीलकर्ता ने क्रूरता और दहेज की मांग के लिए उनके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग करते हुए यह विशेष अनुमति याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने अपने विवादित फैसले में यह देखते हुए कार्यवाही को रद्द करने से इनकार किया कि प्रथम दृष्टया मामला अपीलकर्ताओं के खिलाफ बनता है। इसे चुनौती देते हुए अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अपीलकर्ता शिकायतकर्ता की सास, सास की छोटी बहन और उसके बहनोई हैं।

न्यायालय ने आरोप पत्र और शिकायत का अवलोकन किया। न्यायालय ने पाया कि जांच एजेंसी ने शिकायतकर्ता, उसके माता-पिता और दो पंचायत के बुजुर्गों के बयानों पर भरोसा किया। उनके बयानों की जांच करने के बाद न्यायालय ने उत्पीड़न के आरोपों के संबंध में पाया कि शिकायतकर्ता ने अपने माता-पिता को इसकी जानकारी दी थी। इस प्रकार, उन्होंने कथित उत्पीड़न को नहीं देखा था।

“यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि माता-पिता द्वारा उल्लिखित शिकायतकर्ता के पति और अन्य रिश्तेदारों द्वारा कथित रूप से की गई पिटाई के संबंध में शिकायतकर्ता ने स्वयं अपनी शिकायतों में इसका उल्लेख नहीं किया। इसलिए शिकायतकर्ता की पिटाई का यह आरोप कुछ ऐसा है जिसे शिकायतकर्ता के पिता और माता ने जोड़ा। हालांकि उन्होंने स्वयं इसे नहीं देखा।”

इसके अलावा, न्यायालय ने अन्य दो गवाहों के बयान की जांच की और पाया कि यह सुनी-सुनाई बातों पर आधारित साक्ष्य की प्रकृति का था। न्यायालय ने ध्यान दिया कि यद्यपि ये पंचायत के बुजुर्ग तेलंगाना के निवासी हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया कि वे चेन्नई में आयोजित पंचायत की बैठकों में कैसे उपस्थित थे।

इसके बाद न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यद्यपि शिकायतकर्ता के पति और सास के खिलाफ विशिष्ट आरोप हैं, लेकिन वर्तमान अपीलकर्ताओं के खिलाफ आरोप सामान्य प्रकृति के हैं।

इस पृष्ठभूमि को पुख्ता करते हुए न्यायालय ने उपरोक्त टिप्पणियां कीं और कहा:

“ऐसी परिस्थितियां हो सकती हैं, जहा परिवार के कुछ सदस्य या रिश्तेदार पीड़ित के साथ की गई हिंसा या उत्पीड़न को अनदेखा कर सकते हैं और पीड़ित की कोई मदद नहीं कर सकते हैं, जिसका यह मतलब नहीं है कि वे भी घरेलू हिंसा के अपराधी हैं, जब तक कि परिस्थितियां स्पष्ट रूप से उनकी संलिप्तता और उकसावे का संकेत न दें। इसलिए बिना विशिष्ट आरोप लगाए ऐसे सभी रिश्तेदारों को फंसाना और उन पर आपत्तिजनक कृत्यों का आरोप लगाना और बिना प्रथम दृष्टया सबूत के उनके खिलाफ कार्यवाही करना कि वे घरेलू हिंसा के अपराधियों के साथ मिलीभगत कर रहे थे और सक्रिय रूप से सहयोग कर रहे थे, कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।”

न्यायालय ने आगे कहा कि चूंकि घरेलू हिंसा से सुरक्षा अधिनियम जैसे कानून करीबी रिश्तेदारों को भी अपने दायरे में लेते हैं, इसलिए न्यायालयों को यह देखना चाहिए कि आरोप विशिष्ट हैं न कि सामान्य प्रकृति के। साथ ही न्यायालय ने यह भी माना कि क्रूरता और हिंसा के वास्तविक मामलों को “अत्यंत संवेदनशीलता” के साथ संभाला जाना चाहिए।

“घरेलू हिंसा के पीड़ितों की सुरक्षा के लिए कानून का उद्देश्य और अधिदेश सर्वोपरि है। इस तरह यह सुनिश्चित करके संतुलन बनाना होगा कि अपराधियों को सजा तो मिले, लेकिन परिवार के सभी सदस्यों या रिश्तेदारों को व्यापक तरीके से आपराधिक दायरे में न लाया जाए।”

अंत में न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि ये टिप्पणियां उन मामलों में लागू नहीं होंगी, जहां रिश्तेदारों ने पीड़ित के खिलाफ सक्रिय रूप से क्रूरता बरती है। न्यायालय ने कहा कि घरेलू हिंसा का प्रत्येक मामला प्रत्येक मामले में प्राप्त विशिष्ट तथ्यों पर निर्भर करेगा।

उपर्युक्त तथ्यात्मक पृष्ठभूमि को देखते हुए न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता। उनके खिलाफ़ सबूत अंततः शिकायतकर्ता के सबूत हैं, उन्हें कोई विशेष भूमिका नहीं सौंपी गई है। इस प्रकार, उनके खिलाफ़ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द की गई। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि वर्तमान निष्कर्ष अन्य अभियुक्त व्यक्तियों के खिलाफ़ आपराधिक कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेंगे।

केस टाइटल: गेड्डाम झांसी और अन्य बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य, विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) नंबर 9556 वर्ष 2022

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