गलत ट्रेन में चढ़ने को आधार बनाकर मुआवजा से इनकार नहीं कर सकता रेलवे: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में मृतक युवक के माता-पिता को 8 लाख रुपये का मुआवजा, 9% ब्याज सहित, देने का आदेश दिया है। युवक की मौत उस समय हुई थी जब वह गलती से गलत ट्रेन में चढ़ गया था और रेलवे ने इस आधार पर मुआवजा देने से इनकार कर दिया था। रेलवे ने अपने बचाव में दावा किया था कि मृतक के पास सतना से मैहर तक का वैध टिकट था, लेकिन वह गलती से ऐसी ट्रेन में चढ़ गया जो मैहर स्टेशन पर नहीं रुकती थी। रेलवे के अनुसार, जब मृतक को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने चलती ट्रेन से उतरने की कोशिश की, जिसके कारण उसकी मौत हुई—और इसलिए यह हादसा उसकी अपनी लापरवाही से हुआ।
हालांकि, जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन.वी. अंजरिया की खंडपीठ ने रेलवे के इस तर्क को पूरी तरह खारिज कर दिया। अदालत ने कहा: “सिर्फ इसलिए कि मृतक गलत ट्रेन में चढ़ गया था, इसका यह मतलब नहीं कि वह bona fide passenger नहीं था। रेलवे इस आधार पर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकता।” सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे के इस दावे पर भी सवाल उठाया कि मृतक चलती हुई ट्रेन से उतरने की कोशिश कर रहा था। कोर्ट ने कहा:
“कोई भी समझदार व्यक्ति चलती हुई—वह भी एक्सप्रेस ट्रेन—से उतरने की कोशिश नहीं करेगा। रेलवे ने इस तरह का दावा तो किया, लेकिन इसे साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया।” अदालत ने यह भी कहा कि रेलवे का यह आरोप कि मृतक चलती ट्रेन से कूद गया था, सिर्फ लिखा हुआ दावा है—जिसे साबित करने की जिम्मेदारी रेलवे की थी। कोर्ट ने पाया कि— • रेलवे ने कोई सबूत पेश नहीं किया, • डीआरएम रिपोर्ट में भी इसका कोई उल्लेख नहीं था, • इसलिए यह बचाव स्वीकार नहीं किया जा सकता। खंडपीठ ने कहा कि रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल के दोनों सदस्यों ने सही फैसला दिया था कि रेलवे को मुआवजा देना ही होगा। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए आदेश दिया कि रेलवे 3 महीने के भीतर मृतक के माता-पिता को मुआवजा राशि का भुगतान करे।
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