आडवाणी की लोकप्रियता चरम पर थी, तो वाजपेयी कैसे बने PM कैंडिडेट?

मई के महीने में उस दिन चिलचिलाती धूप थी. एंबेसडर कार से अटल बिहारी वाजपेयी राष्ट्रपति भवन पहुंचे. आधे घंटे बाद लौटे तो हाथ में एक कागज था. अगले दिन वह भारत के प्रधानमंत्री बने. यह वो दौर था जब आडवाणी की लोकप्रियता चरम पर थी फिर पीएम वाजपेयी कैसे बने?

May 1, 2024 - 16:39
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साल 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी देश के 10वें प्रधानमंत्री बने थे. हालांकि उस समय लालकृष्ण आडवाणी का नाम काफी चर्चा में रहा था. हुआ यूं कि चुनाव से कुछ महीने पहले 1995 में मुंबई में भाजपा ने तीन दिन का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया. 12 नवंबर को ऐलान हुआ कि मुरली मनोहर जोशी की जगह अब पार्टी के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी होंगे. उस समय आडवाणी की लोकप्रियता चरम पर थी. रामजन्मभूमि आंदोलन से उनकी अलग पहचान बन चुकी थी. हालांकि अधिवेशन में जब आडवाणी के बोलने की बारी आई तो उन्होंने अपने ऐलान से सबको चौंका दिया

जी हां, आडवाणी ने कहा कि अगले साल 1996 में होने वाला आम चुनाव अटल बिहारी वाजपेयी के चेहरे पर लड़ा जाएगा. साफ हो गया कि अगर सरकार बनती है तो वाजपेयी प्रधानमंत्री बनेंगे. अटल ने इनकार किया. उन्होंने कहा कि मैं नहीं, आडवाणी जी प्रधानमंत्री बनेंगे. आडवाणी अड़ गए. बोले कि मैंने अध्यक्ष के तौर पर इसका ऐलान कर दिया है. अब कोई बदलाव नहीं हो सकता. बाद में आडवाणी ने कहा था कि उन्हें जो सही लगा उन्होंने वही किया था

एंबेसडर कार में निकले वाजपेयी

वैसे, 1996 में वाजपेयी की सरकार बनी जरूर लेकिन सिर्फ 13 दिन चल सकी. 'The Untold Vajpayee' किताब में उस दिन की घटना का विस्तार से जिक्र है जब अटल राष्ट्रपति भवन पहुंचे थे. तारीख थी 15 मई 1996 और तपती गर्मी में एंबेसडर कार राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ बढ़ रही थी. दोपहर का भोजन करने के बाद वाजपेयी राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा से मिलने निकले थे. राष्ट्रपति ने उन्हें अगली सरकार बनाने की औपचारिकताओं पर चर्चा करने के लिए बुलाया था. 

उस साल आम चुनावों में खंडित जनादेश आया था. कोई भी विपक्षी दल अपने दम पर या सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं था. भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. कांग्रेस को केवल 140 सीटें मिली थीं. राष्ट्रपति से मिलने से पहले तक ऐसा माना जा रहा था कि अगली सरकार का दावा तो कर दिया जाए लेकिन उसके प्रति लालसा न दिखाई जाए. भाजपा को विश्वास नहीं था कि वह गैर-कांग्रेस और गैर-वामपंथी दलों के सहयोग से बहुमत का आंकड़ा हासिल कर पाएगी. 

कांग्रेस को ऑफर देने वाली थी भाजपा

हालांकि भाजपा को कहीं न कहीं आशा की किरण दिखाई दे रही थी. चर्चा थी कि अगर कांग्रेस पार्टी वाजपेयी सरकार के विश्वास मत के समय अनुपस्थित रहने पर सहमत हो जाती है तो भाजपा अपनी तरफ से कांग्रेस के शिवराज पाटिल को लोकसभा अध्यक्ष चुनने को तैयार थी. 

राष्ट्रपति से आधे घंटे की मुलाकात के बाद वाजपेयी एक फाइल हाथ में लिए निकले. अपने सहयोगी से बोले राष्ट्रपति ने उन्हें भारत के अगले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के अनुरोध वाला पत्र दिया है. शपथ का शुभ मुहूर्त भी निकलवा लिया गया था. 

22 साल पहले लोकसभा की केवल दो सीटें जीतने वाली पार्टी 1996 में सरकार बनाने जा रही थी. दूसरे दलों से समर्थन पाने की उम्मीद में वाजपेयी ने राष्ट्र के नाम संदेश दिया. अखबारों में लेख लिखे गए. विश्वास मत के दौरान उन्होंने लोकसभा में जो भाषण दिया वह आज भी याद किया जाता है. ऐसे ही एक भाषण का अंश देखिए.