कोर्स करेक्शन या वोट बैंक पॉलिटिक्स? भाजपा से ब्राह्मणों को छीनने में जुटे अखिलेश

पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे और विपक्षी दलों के गठबंधन में बसपा को लेकर अनबन ने समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव की चिंता बढ़ा दी है. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले उत्तर प्रदेश में भाजपा से मुकाबले की तैयारी के मद्देनजर अखिलेश ने ब्राह्मण वोट बैंक को लुभाने की कोशिश तेज कर दी है.

Dec 22, 2023 - 11:42
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कोर्स करेक्शन या वोट बैंक पॉलिटिक्स? भाजपा से ब्राह्मणों को छीनने में जुटे अखिलेश

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग की बड़ी मिसाल तीन राज्यों में सरकार बनाते वक्त दिखी. इसके साथ ही विपक्षी दलों में हलचल तेज हो गई है. दिल्ली की सत्ता के रास्ते यानी उत्तर प्रदेश में भाजपा का मुकाबला करने के लिए ब्राह्मण उसके वोट बैंक को लुभाने के लिए समाजवादी पार्टी ने कोशिशें तेज कर दी हैं. सपा की ओर से 24 दिसंबर को लखनऊ में अपने मुख्यालय में ब्राह्मण महापंचायत बुलाई है. प्रदेश भर के ब्राह्मण नेताओं के इस प्रस्तावित महाजुटान में सपा प्रमुख अखिलेश यादव बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे.

राजनीतिक जानकार बसपा से भाजपा होते हुए सपा में जाकर राष्ट्रीय महासचिव बने स्वामी प्रसाद मौर्य के ब्राह्मण समाज और सनातन धर्म विरोधी बयानों को लेकर घिरे अखिलेश यादव के इस सियासी कदम को डैमेज कंट्रोल और कोर्स करेक्शन की तरह देख रहे हैं. वहीं, कई विश्लेषक इसे अखिलेश यादव की वोट बैंक पॉलिटिक्स करार दे रहे हैं. आइए, जानते हैं कि किन राजनीतिक दबावों में समाजवादी पार्टी को ब्राह्मण महापंचायत करवाने की जरूरत पड़ी और अखिलेश यादव इससे क्या हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटों को साधने में क्यों लगी रहती हैं सभी राजनीतिक पार्टियां

यूपी में ब्राह्मण समाज की आबादी लगभग 10 फीसदी मानी जाती है. वहीं मध्य बुंदेलखंड, प्रयागराज, वाराणसी, बलरामपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, कानपुर, नोएडा और बस्ती जैसे कुल 12 जिले में ब्राह्मण वोटों का आंकड़ा 15 फीसदी से भी अधिक है. संख्याबल बहुत ज्यादा नहीं होने पर भी ब्राह्मण समाज जनमत तैयार करने में बड़ी भूमिका निभाता है. यूपी में लगभग 115 विधानसभा सीटों और करीब 40 लोकसभा सीटों के नतीजे को सीधे तौर पर निर्धारित करते हैं. इसलिए सभी राजनीतिक पार्टियां ब्राह्मण वोटों को साधने में लगी रहती हैं. हाल ही में राजस्थान में 33 साल बाद ब्राह्मण को मुख्यमंत्री बनाया गया है. भाजपा के इस कदम का असर उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में दिख सकता है. उत्तर प्रदेश में 1989 के बाद से ब्राह्मण वर्ग से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना है. 1990 से 2007 तक ब्राह्मण समुदाय की राजनीति भी काफी सुस्त रही, लेकिन 2007 में इस वोट बैंक ने जबरदस्त वापसी की और तबसे हर चुनाव में इसकी धाक दिखती रहती है. इसलिए चुनाव करीब आते ही यूपी में सभी राजनीतिक दल ब्राह्मण वोटों को साधने की कोशिश में भिड़ जाते हैं.

यूपी के राजनीतिक इतिहास में ब्राह्मणों की निर्णायक भूमिका रही है. 2007 में ब्राह्मणों ने मायावती का साथ दिया और बसपा ने प्रचंड बहुमत हासिल कर उत्तर प्रदेश में सरकार बना ली. विधानसभा चुनाव 2012 में ब्राह्मणों का साथ पाकर अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने. उसके बाद विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव ब्राह्मण वोट बैंक भाजपा के साथ दिखा है. लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा ने यूपी में कुल ब्राह्मण वोटों का लगभग 83 फीसदी हासिल किया था. वहीं, उत्तर प्रदेश में गोविंद वल्लभ पंत, सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, श्रीपति मिश्रा और नारायण दत्त तिवारी जैसे 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री देने वाली कांग्रेस सियासत में पूरी तरह से हाशिए पर है.

भाजपा, सपा और बसपा में ब्राह्मण वोटों को लेकर लंबे समय से रस्साकशी

उत्तर प्रदेश में बीते साल विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ भाजपा ने ब्राह्मणों की शिकायतों को दूर करने के लिए 16 सदस्यीय समिति का गठन किया. योगी सरकार में मंत्री जितिन प्रसाद लंबे समय से ब्राह्मण चेतना परिषद के संरक्षक हैं. वहीं, बसपा प्रमुख मायावती ने सतीश चंद्र मिश्रा को ब्राह्मणों को लुभाने की जिम्मेदारी सौंपी. उन्होंने यूपी में कई जगहों पर ब्राह्मण सम्मलेन आयोजिय किए. वहीं, अखिलेश यादव ने लखनऊ के ग्रामीण इलाके में भगवान परशुराम के फरसे की मूर्ति का अनावरण किया था. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने हर जिले में भगवान परशुराम की मूर्ति लगाने की घोषणा कर संदेश दिया था कि यादव और ब्राह्मण सपा के साथ हैं. कांग्रेस ने हाल ही में भूमिहार ब्राह्मण अजय राय को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है. हालांकि, अधिकतर ब्राह्मण वोट भाजपा के साथ दिखा. 15 दिसंबर को लखनऊ में हुए एक बड़े ब्राह्मण सम्मेलन में भाजपा के दिग्गज ब्राह्मण नेताओं ने शिरकत की थी. इसमें डिप्टी सीएम बृजेश पाठक सहित पूर्व मंत्री सतीश द्विवेदी भी शामिल हुए थे. 

स्वामी प्रसाद मौर्य को बयानों से नाराज ब्राह्मण वर्ग को नजदीक लाने की कोशिश

इसके बाद ब्राह्मण वोट बैंक को लेकर अखिलेश यादव की छटपटाहट भी बढ़ी है. लोकसभा चुनाव से पहले वह स्वामी प्रसाद मौर्य को बयानों से नाराज ब्राह्मण वर्ग को नजदीक लाने की कोशिश में जुटे हैं. समाजवादी पार्टी ने अपने ब्राह्मण विधायक मनोज पांडेय को विधानसभा में अपना मुख्य सचेतक बना रखा है. रायबरेली के ऊंचाहार से सपा विधायक मनोज पांडेय ब्राह्मण महापंचायत से एक दिन पहले 23 दिसंबर को लखनऊ स्थित अपने सरकारी आवास पर ब्राह्मण समाज के नेताओं के साथ मीटिंग करने वाले हैं. उन्होंने प्रदेश भर के ब्राह्मण नेताओं से बातचीत करने का दावा किया है. 

इसी साल 9 अगस्त को मनोज पांडेय ने भगवान परशुराम की जन्मस्थली के रूप में मशहूर शाहजहांपुर रोड स्थित उमरिया धाम पर भगवान परशुराम की मूर्ति का अनावरण किया था. इस कार्यक्रम में पहले अखिलेश यादव का जाना तय था और नहीं पहुंच पाए थे. अखिलेश यादव पर भाजपा यह भी आरोप लगाती है कि उन्होंने पहले भी ब्राह्मण समाज के लिए कई घोषणाएं की, लेकिन एक भी जमीन पर नहीं उतार पाए.

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