जमानत याचिकाएं 3-6 महीने में निपटाएं, सालों तक लंबित न रखें: सुप्रीम कोर्ट का हाईकोर्ट्स व ट्रायल कोर्ट्स को निर्देश

Sep 12, 2025 - 11:03
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जमानत याचिकाएं 3-6 महीने में निपटाएं, सालों तक लंबित न रखें: सुप्रीम कोर्ट का हाईकोर्ट्स व ट्रायल कोर्ट्स को निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की हाईकोर्ट्स और ट्रायल कोर्ट्स को निर्देश दिया है कि वे जमानत और अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) से जुड़ी याचिकाओं को जल्द से जल्द निपटाएं, अधिमानतः 3 से 6 महीने के भीतर। जस्टिस आर. महादेवन ने फैसला सुनाते हुए कहा — “हाईकोर्ट और अधीनस्थ अदालतें जमानत और अग्रिम जमानत की याचिकाओं का निपटारा कम समय में करें, अधिमानतः 3 से 6 महीने के भीतर। यही निर्देश हमने दिया है।” जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि ऐसी याचिकाएँ सीधे तौर पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) से जुड़ी होती हैं, इसलिए इन्हें वर्षों तक लंबित नहीं छोड़ा जा सकता।

कोर्ट ने टिप्पणी की,“व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ी याचिकाएँ सालों तक लंबित नहीं रखी जा सकतीं। लंबी देरी से न केवल आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) के उद्देश्य पर असर पड़ता है, बल्कि यह न्याय से वंचित करने के बराबर है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 की भावना के खिलाफ है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि जमानत और अग्रिम जमानत की याचिकाओं पर जल्दी और मेरिट के आधार पर फैसला होना चाहिए, इन्हें टालना उचित नहीं है।

मामला क्या था? इस केस में अग्रिम जमानत की याचिका 2019 में दायर हुई थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे 2025 तक लंबित रखा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा — “हमने इस प्रथा की कड़ी निंदा की है।” बॉम्बे हाईकोर्ट ने तीन आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इन पर IPC की धारा 420, 463, 464, 465, 467, 468, 471 और 474 पढ़ी विद धारा 34 के तहत जालसाजी और जमीन के अवैध हस्तांतरण का आरोप था। दो आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा और अपीलें खारिज कर दीं। साथ ही कहा कि अगर आरोपी गिरफ्तार होते हैं तो उन्हें नियमित जमानत (Regular Bail) के लिए आवेदन करने की आज़ादी होगी।

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