जस्टिस वर्मा के घर पर मिला कैश, क्या मौजूदा जज के खिलाफ दर्ज हो सकती है FIR? इस मामले में कैसे होता है एक्शन
ऐसे मामलों में आम आदमी के खिलाफ तुरंत एफआईआर दर्ज की जाती है, लेकिन जस्टिस यशवंत वर्मा मामले में ऐसा क्यों नहीं हुआ? आइए जानते हैं कि इस मामले में कार्रवाई कैसे होती है
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के घर पर हुए 'कैश कांड' ने खलबली मचा दी है. कथित तौर पर उनके घर पर भारी मात्रा में कैश मिला था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट भी एक्शन में आ गया है. भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की है. इस जांच कमेटी की अध्यक्षता पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू करेंगे. इसके अलावा समिति में हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट के जज अनु शिवरामन भी शामिल हैं.
इधर, जस्टिस यशंवत वर्मा ने अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज किया है. उन्होंने कहा है कि जिस समय यह घटना हुई वह और उनकी पत्नी दिल्ली में मौजूद नहीं थे. उन्होंने कहा है कि यह सब उन्हें बदनाम करने और फंसाने की साजिश है. मामला जो भी लेकिन जस्टिस वर्मा के खिलाफ अब तक कार्रवाई न होने पर कई सवाल उठ रहे हैं. लोगों का कहना है कि ऐसे मामले में आम आदमी के खिलाफ तुरंत एफआईआर दर्ज की जाती है और आपराधिक जांच शुरू कर दी जाती है, लेकिन जस्टिस वर्मा मामले में ऐसा क्यों नहीं हुआ? ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या किसी मौजूदा जज के खिलाफ FIR दर्ज की जा सकती है? इस मामले में कार्रवाई कैसे होती है.
मौजूदा जज पर कब दर्ज की जा सकती है एफआईआर?
यह मामला जितना सरल दिख रहा है, उसका जवाब उतना ही कठिन है. दरअसल, भारत के मौजूदा न्यायाधीश के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही और एफआईआर तब तक दर्ज नहीं की जा सकती है, जब तक भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) इस मामले में अपना परामर्श न दें. अगर सीजेआई को लगता है कि मौजूदा न्यायाधीश पर लगे आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं तो वह भारत के राष्ट्रपति को पुलिस क एफआईआर दर्ज करने की अनुमति देने की सलाह देते हैं. इसके बाद ही आगे की कार्रवाई होती है. हालांकि, न्यायाधीश अगर पद पर नहीं हैं तो इस मामले में मंजूरी आवश्यक नहीं होती है.
इन-हाउस प्रक्रिया के तहत होती है कार्रवाई
1995 में रविचंद्रन अय्यर बनाम जस्टिस एएम भट्टाचार्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी मौजूदा जज के खिलाफ महाभियोग का उपयोग केवल गंभीर मामलों में ही किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में वैकल्पिक प्रक्रिया का सुझाव दिया गया था, जिसे इन-हाउस प्रक्रिया कहा जाता है. इसके तहत सीजेआई जज के खिलाफ शिकायत मिलने पर जवाब तलब करते हैं. अगर वह जवाब ने संतुष्ट नहीं हैं और उनको लगता है कि मामला गंभीर है और इसकी जांच होनी चाहिए तो वह एक इन-हाउस जांच पैनल का गठन करते हैं. इस पैनल में दूसरे हाईकोर्टों के दो मुख्य न्यायाधीश और एक हाईकोर्ट का न्यायाधीश शामिल होगा.
जज को कैसे पद से हटाया जाता है?
अगर इन-हाउस जांच पैनल अपनी रिपोर्ट में जज को हटाने की सिफारिश करता है तो मुख्य न्यायाधीश उस न्यायाधीश (जिस पर आरोप लगे हैं) से इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के लिए कहते हैं. अगर वह इससे इनकार कर देता है तो महाभियोग लाया जा सकता है. महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है. इस प्रस्ताव पर लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों का समर्थन होना आवश्यक है. दोनों सदनों से महाभियोग प्रस्ताव पास होने के बाद न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है. भारत में आज तक किसी हाईकोर्ट के जज को महाभियोग के जरिए पद से हटाया नहीं गया है.
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