प्राण-प्रतिष्ठा पर सवाल उठाने वाले शंकराचार्य अब मोदी के पढ़ने लगे कसीदे, अचानक क्यों बदले तेवर?

अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का विरोध करने वाले शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के बोल अब बदल गए हैं. अचानक उनके तल्ख तेवर नरम पड़ गए हैं. इतना ही नहीं वे अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ भी कर रहे हैं.

Jan 21, 2024 - 17:03
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प्राण-प्रतिष्ठा पर सवाल उठाने वाले शंकराचार्य अब मोदी के पढ़ने लगे कसीदे, अचानक क्यों बदले तेवर?

अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का विरोध करने वाले शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के बोल अब बदल गए हैं. अचानक उनके तल्ख तेवर नरम पड़ गए हैं. इतना ही नहीं वे अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ भी कर रहे हैं. उन्होंने कहा है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से हिन्दुओं का स्वाभिमान जाग गया है.  

..हम मोदी विरोधी नहीं

शंकराचार्य ने कहा कि सच्चाई यह है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से हिंदुओं का स्वाभिमान जाग गया है. यह छोटी बात नहीं है. हम कई बार सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं, हम मोदी विरोधी नहीं बल्कि मोदी के प्रशंसक हैं. हम उनकी प्रशंसा करते हैं क्योंकि स्वतंत्र भारत में ऐसा कौन सा प्रधानमंत्री है जो इतना बहादुर है, जो हिंदुओं के लिए दृढ़ता से खड़ा है?

हिन्दू भावनाओं का समर्थन

उन्होंने कहा कि हम किसी की आलोचना नहीं कर रहे हैं लेकिन वह पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो हिंदू भावनाओं का समर्थन करते हैं. पिछली बातों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मीडिया का एक ही एजेंडा है - हमें मोदी विरोधी साबित करना. मुझे बताओ, जब पीएम ने अपने गृह मंत्री के माध्यम से अनुच्छेद 370 को निरस्त किया, तो क्या हमने इसका स्वागत नहीं किया?

क्या कहा था अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने?

उत्तराखंड में ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने पहले कहा था कि मंदिर का निर्माण सनातन धर्म की जीत का प्रतीक नहीं है. शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद उत्तराखंड में ज्योतिर मठ में सभी समारोहों और गतिविधियों की देखभाल करते हैं- जो संत आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार प्रमुख पीठों में से एक है. उन्होंने 2006 में यह जिम्मेदारी संभाली थी. अविमुक्तेश्वरानंद ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया था. इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया था कि यह हिंदू धर्म के मानदंडों का पालन नहीं करता है. हम अपने धर्म शास्त्र के खिलाफ नहीं जा सकते.

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