बीमा कंपनियों द्वारा अनावश्यक तकनीकी अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराज़गी, लगाया जुर्माना

Oct 18, 2025 - 14:50
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बीमा कंपनियों द्वारा अनावश्यक तकनीकी अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराज़गी, लगाया जुर्माना

सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि कार्य के दौरान घायल हुए किसी कर्मचारी को मुआवज़ा देने का पूरा बोझ अकेले नियोक्ता (Employer) पर नहीं डाला जा सकता, क्योंकि बीमाकर्ता नियोक्ता के साथ संयुक्त रूप से और अलग-अलग मुआवज़ा देने के लिए उत्तरदायी है। जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने कलकत्ता हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसने बीमाकर्ता को कर्मचारी को मुआवज़ा देने की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया था। यह फैसला उस बीमा अनुबंध के बावजूद आया था जो कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम 1923 के तहत बीमाकर्ता को ऐसे मुआवज़े के लिए उत्तरदायी बनाता है।

दरअसल कर्मकार मुआवज़ा आयुक्त ने नियोक्ता और बीमाकर्ता दोनों को संयुक्त रूप से और अलग-अलग मुआवज़ा देने का आदेश दिया था। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस आदेश को संशोधित करते हुए केवल नियोक्ता को उत्तरदायी ठहराया, जिसके बाद नियोक्ता बीमाकर्ता से प्रतिपूर्ति की मांग कर सकता था। इस पर नियोक्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई, जिसने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए आयुक्त के मूल आदेश को बहाल कर दिया। कोर्ट ने कहा,

"जहाँ नियोक्ता और बीमाकर्ता के बीच बीमा अनुबंध हुआ है, वहाँ बीमाकर्ता नियोक्ता को क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी होगा।" कोर्ट ने आगे कहा, "वर्तमान मामले में इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि बीमाकर्ता ने बीमित व्यक्ति (यानी, नियोक्ता) को क्षतिपूर्ति करने की जिम्मेदारी ली और अपनी देनदारी से बाहर निकलने का कोई अनुबंध नहीं किया। ऐसी परिस्थितियों में हमारी राय में उपरोक्त निर्णय पहले प्रतिवादी के लिए कोई सहायक नहीं है।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कोर्ट ने बीमा कंपनियों द्वारा बीमा अनुबंधों के तहत अपनी देनदारी से बचने और लाभार्थी को समय पर मुआवज़ा जारी करने में देरी करने के लिए तकनीकी आधारों पर तुच्छ अपीलें (Frivolous Appeals) दायर करने की प्रथा पर भी चिंता व्यक्त की। हाईकोर्ट के समक्ष तुच्छ अपील दायर करने के लिए बीमा कंपनी पर 50,000 का जुर्माना लगाया गया। कोर्ट ने कहा, "समापन से पहले हमें बीमा कंपनियों की उस प्रथा पर अपना दर्द व्यक्त करना चाहिए, जिसमें वे अनावश्यक रूप से तकनीकी दलीलों को उठाकर अपील दायर करती हैं। खासकर जब वे बीमा अनुबंध के तहत अपनी अंतिम देनदारी से इनकार नहीं करती हैं। चूँकि पहले प्रतिवादी ने अनावश्यक रूप से हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की और इस कारण दूसरे प्रतिवादी के पक्ष में समय पर मुआवज़ा जारी नहीं हो सका, हम उचित समझते हैं कि पहले प्रतिवादी द्वारा दूसरे प्रतिवादी को 50,000 का हर्जाना दिया जाए।" कोर्ट ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने भी अति-तकनीकी दृष्टिकोण अपनाया और कर्मचारी (दावेदार) के नुकसान के लिए आयुक्त द्वारा पारित अवार्ड को संशोधित करते समय 1923 अधिनियम की धारा 19 के प्रावधानों को नजरअंदाज किया, जबकि बीमा अनुबंध के तहत बीमा कंपनी की देनदारी को लेकर कोई विवाद नहीं था। अपील स्वीकार कर ली गई।

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