मुंबई NIA कोर्ट ने 2008 मालेगांव विस्फोट मामले में प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित और अन्य 5 आरोपियों बरी किया
लगभग 17 साल की लंबी सुनवाई के बाद मुंबई स्पेशल कोर्ट ने गुरुवार को कुख्यात 2008 मालेगांव बम विस्फोट मामले में सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया। इस विस्फोट ने सितंबर 2008 में मालेगांव शहर को हिलाकर रख दिया था। इस विस्फोट में आधा दर्जन से ज़्यादा लोग मारे गए और कम से कम 100 घायल हुए। इस मामले में फैसला 2018 में सुनवाई शुरू होने के बाद 19 अप्रैल, 2025 को सुरक्षित रखा गया था। इस मामले में जिसका राजनीतिक रंग काफ़ी ज़्यादा है, पूर्व भारतीय जनता पार्टी (BJP) सांसद प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर (रिटायरमेंटट) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी सहित सात आरोपियों के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाया गया था।
स्पेशल जज ए.के. लाहोटी ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि जिस बाइक में विस्फोट हुआ वह प्रज्ञा ठाकुर की थी। अदालत ने कहा कि वह विस्फोट से कम से कम दो साल पहले साध्वी बनी थीं... उनके या किसी अन्य आरोपी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है। सह-आरोपी कर्नल पुरोहित के आवास पर आरडीएक्स रखे जाने के बारे में अदालत ने कहा कि विस्फोटकों के भंडारण के बारे में रिकॉर्ड में कोई सबूत नहीं है। अदालत ने कहा,
"कमरे का स्केच नहीं बनाया गया... नमूने दूषित थे।" अदालत ने आगे कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित द्वारा स्थापित संगठन अभिनव भारत ने अपने धन का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए किया। यह विस्फोट 29 सितंबर, 2008 को हुआ था, जब मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर स्थित इस शहर में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण में विस्फोट किया गया। इस मामले की जाँच शुरू में शहीद पुलिसकर्मी हेमंत करकरे के नेतृत्व में महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) ने की थी। जनवरी 2009 में ठाकुर और पुरोहित सहित सभी 12 आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया गया, जिन्हें विस्फोट के कुछ महीनों बाद गिरफ्तार किया गया।
हालांकि, 2011 में इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने अपने हाथ में ले ली, जिसने 13 मई, 2016 को अपना पूरक आरोपपत्र दाखिल किया। ATS के बयान में आरोप लगाया गया कि ठाकुर और दक्षिणपंथी संगठन अभिनव भारत के संस्थापक पुरोहित ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर मुस्लिम समुदाय को 'बदला' लेने और 'आतंकित' करने की साजिश रची। इसमें आगे कहा गया कि भोपाल, इंदौर और अन्य जगहों पर कई 'षड्यंत्र बैठकें' हुईं। ATS के अनुसार, ठाकुर ने एक मोटरसाइकिल मुहैया कराई थी, जिसका इस्तेमाल विस्फोट को अंजाम देने के लिए किया गया। ATS ने कहा कि उक्त मोटरसाइकिल ठाकुर के नाम पर रजिस्टर्ड थी।
अपने आरोपपत्र में ATS ने सभी आरोपियों के खिलाफ कठोर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MACOCA) सहित कई आरोप लगाए। NIA 2011 से 2016 तक ठाकुर की किसी भी राहत का विरोध करती रही। हालांकि, आतंकवाद-रोधी एजेंसी ने पूरी तरह पलटवार करते हुए अपने 'पूरक आरोपपत्र' में उनके खिलाफ सभी आरोप हटा दिए। हालांकि, इसने अन्य आरोपियों के खिलाफ ATS के बयान को बरकरार रखा और उन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम सहित कई कठोर कानूनों के तहत आरोपपत्र दायर किया। ATS के विपरीत NIA के आरोपपत्र में कहा गया कि उसे ठाकुर के खिलाफ कोई महत्वपूर्ण सबूत नहीं मिला और इसके बजाय ATS पर ठाकुर के खिलाफ बयान दर्ज करने के लिए गवाहों को 'प्रताड़ित' करने का आरोप लगाया। एजेंसी ने सभी 12 आरोपियों के खिलाफ MACOCA के आरोपों को हटाने की भी सिफारिश की थी। यह उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा कि NIA ने अपने नामित विशेष लोक अभियोजक (SPP) अविनाश रसाल को सूचित किए बिना, नाटकीय ढंग से अपना आरोपपत्र दायर किया था। हालांकि, स्पेशल कोर्ट ने NIA द्वारा ठाकुर को क्लीन चिट दिए जाने के बावजूद उन्हें बरी करने से इनकार कर दिया था। अदालत ने कहा कि वह ATS द्वारा उसके खिलाफ पेश की गई आपत्तिजनक सामग्री की अनदेखी नहीं कर सकती। गौरतलब है कि यह मामला कई विवादों के कारण सुर्खियों में रहा है। रसल से पहले विशेष लोक अभियोजक रोहिणी सालियान थीं, जिन्हें अचानक पद से हटा दिया गया, क्योंकि उन्होंने आरोप लगाया कि NIA ने उनसे मामले में गिरफ्तार दक्षिणपंथी नेताओं के खिलाफ 'नरम रुख' अपनाने को कहा था।
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