'वैवाहिक विवादों में आपराधिक शिकायतों की गहन जांच की आवश्यकता': सुप्रीम कोर्ट ने देवर के विरुद्ध दहेज उत्पीड़न का मामला खारिज किया

Sep 25, 2025 - 11:57
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'वैवाहिक विवादों में आपराधिक शिकायतों की गहन जांच की आवश्यकता': सुप्रीम कोर्ट ने देवर के विरुद्ध दहेज उत्पीड़न का मामला खारिज किया

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया कि वैवाहिक विवादों से उत्पन्न होने वाले आपराधिक मामलों की व्यावहारिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए अत्यंत सावधानी से जांच की जानी चाहिए। एक पत्नी द्वारा अपने देवर के विरुद्ध दहेज उत्पीड़न, घरेलू क्रूरता आदि के आरोपों के साथ दर्ज कराई गई FIR खारिज करते हुए अदालत ने कहा: "अदालतों को शिकायतों से निपटने में सावधानी और सतर्कता बरतनी चाहिए और वैवाहिक विवादों से निपटते समय व्यावहारिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखना चाहिए, जहां न्याय की विफलता और कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए आरोपों की अत्यंत सावधानी और सतर्कता से जांच की जानी चाहिए।"

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा FIR रद्द करने से इनकार करने के खिलाफ अपील स्वीकार की। शिकायतकर्ता-पत्नी ने अपने पति, सास और अपीलकर्ता (देवर) के खिलाफ IPC की धारा 323, 498ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत मामला दर्ज कराया। अदालत ने पाया कि अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप सामान्य, अस्पष्ट है। उनमें उत्पीड़न के समय, स्थान या तरीके जैसे विशिष्ट विवरणों का अभाव है। न्यायालय ने कहा कि FIR में क्रूरता और दहेज की मांग का आरोप तो लगाया गया, लेकिन अपीलकर्ता के किसी भी कृत्य का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया।

अदालत ने वैवाहिक विवादों में परिवार के सभी सदस्यों को फंसाने की प्रवृत्ति के प्रति चेतावनी देते हुए कहा, "विशिष्ट विवरणों का उल्लेख किए बिना केवल उत्पीड़न के सामान्य आरोप किसी भी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे।" हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल (1992) का हवाला देते हुए न्यायालय ने दोहराया कि कार्यवाही रद्द की जा सकती है, जहां आरोप स्वाभाविक रूप से असंभाव्य हों या किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा न करते हों।

इसने दारा लक्ष्मी नारायण बनाम बिहार राज्य (2025) का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि दहेज संबंधी मामलों में रिश्तेदारों पर लगाए जाने वाले व्यापक आरोपों को "शुरुआत में ही रोक दिया जाना चाहिए" ताकि IPC की धारा 498ए का दुरुपयोग रोका जा सके। दारा लक्ष्मी नारायण मामले में अदालत ने कहा था: हाल के वर्षों में देश भर में वैवाहिक विवादों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। साथ ही विवाह संस्था के भीतर कलह और तनाव भी बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप, IPC की धारा 498ए जैसे प्रावधानों का दुरुपयोग पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने के साधन के रूप में करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। वैवाहिक विवादों के दौरान अस्पष्ट और सामान्यीकृत आरोप लगाने से यदि उनकी जांच नहीं की जाती है तो कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग होगा और पत्नी तथा/या उसके परिवार द्वारा दबाव डालने की रणनीति को बढ़ावा मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और केवल अपीलकर्ता-देवर के विरुद्ध यह स्पष्ट करते हुए FIR रद्द की कि पक्षकारों के बीच लंबित वैवाहिक कार्यवाही उनके गुण-दोष के आधार पर जारी रहेगी।

 Case : Shobhit Kumar Mittal v State of Uttar Pradesh

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