संजय का खौफ... अपने ही बेटे से डरकर इंदिरा गांधी ने क्यों हटाई इमरजेंसी?
देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने बेटे संजय और कुछ करीबियों के कहने पर इमरजेंसी लगाई थी. लेकिन माना जाता है कि संजय की महत्वकांक्षा को देखते हुए उन्होंने इसे हटा दिया था
संजय चाहते थे संविधान में बदलाव
खुद बनना चाहते थे राष्ट्रपति
12 जून, 1975 को इलाहबाद हाईकोर्ट के में भीड़ लगी थी. अदालत की कर्रवाई देखने के लिए इतने लोग आए थे, जितने सालभर भी नहीं आए. यहां से करीब 700 किमी दूर दिल्ली में देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की धड़कनें बढ़ी हुई थीं. हाईकोर्ट के जज जगमोहनलाल सिन्हा ने एतिहासिक फैसला सुनाया. उन्होंने माना कि 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट पर सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया. लिहाजा, उन्हें दोषी मानते हुए उनका निर्वाचन अवैध हो गया. 6 साल तक उन पर चुनाव लड़ने के लिए भी रोक लगा दी. फैसला इंदिरा के खिलाफ चुनाव लड़े संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राज नारायण के हक में रहा.
इंदिरा गांधी ने इनके कहने पर लगाया आपातकाल
इंदिरा गांधी के प्राइवेट सेक्रेटरी (PS) आर के धवन ने एक इंटरव्यू में बताया, 'फैसला आते ही इंदिरा गांधी ने इस्तीफा देने की बात ठान ली थी. उन्होंने अपना त्यागपत्र भही टाइप करवा लिया था. लेकिन वे इस्तीफे पर साइन करतीं, उससे पहले ही उनकी कैबिनेट के वरिष्ठ सहयोगियों ने उन्हें रोक लिया.'
इसके बाद इंदिरा गांधी ने तीन लोगों के कहने पर आपातकाल लगाने का फैसला किया. इनमें पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे, हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल और इंदिरा के बेटे संजय गांधी थे. सिद्धार्थ रे और बंसीलाल संजय के ही करीबी थे.
संजय बोले- मैं 35 साल तक इमरजेंसी चाहत था
इमरजेंसी हटने के बाद वरिष्ठ पत्रकार कुदीप नैयर संजय गांधी से मिले थे. संजय ने कहा था कि मैं ये मानकर चल रहा था कि करीब 35 साल तक तो इमरजेंसी रहेगी, लेकिन मां ने चुनाव करवा दिए. ऐसे में सवाल ये उठता है कि इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी क्यों हटाई? दरअसल, इंदिरा गांधी ने बेटे संजय की राजनीतिक महत्वकांक्षा को देखते हुए इमरजेंसी हटाई थी. संजय गांधी भारत में अमेरिका की तरह 'राष्ट्रपति शासन की प्रणाली' चाहते थे.
संजय चाहते थे संविधान में बदलाव
वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी लिखती अपनी किताब 'हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड' लिखा कि इंदिरा गांधी ने डीके बरुआ, रजनी पटेल और सिद्धार्थ शंकर रे इस इस मसले पर सुझाव मांगा. संविधान को नई संविधान सभा में ले जाकर भारत में राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू की जा सकती है. इसके अलावा इसके लिए एक ड्राफ्ट भी तैयार हुआ, जिसे डीके बरुआ ने संजय गांधी तक पहुंचा दिया. फिर उनके करीबियों ने यूपी, बिहार, हरियाणा और पंजाब विधानसभा में इस प्रस्ताव को पारित करवा दिया. इस प्रस्ताव में भारतीय राष्ट्रपति के पास अमेरिकी राष्ट्रपति से भी अधिक ताकत देने की बात कही. साथ ही कोई भी राष्ट्रपति की न तो जांच कर सकता है, न ही उससे पूछताछ कर सकता है.
'संजय बनाना चाहते थे राष्ट्रपति'
इंदिरा गांधी इस प्रस्ताव से सहमत नहीं थीं. लेकिन उन पर दबाव बनाने के लिए ही संजय ने कुछ राज्यों की विधानसभा में इस प्रस्ताव को पारित करवाया. नीजरा चौधरी ने लिखा,'कुछ लोगों का मानना है कि संजय की चली होती तो वे संविधान बदल देते और खुद राष्ट्रपति बनते.' ऐसा माना जाता है कि इंदिरा गांधी अपने ही बुने जाल में फंसती जा रही थीं.
इंदिरा ने लिया इमरजेंसी हटाने का फैसला
आखिरकार इंदिरा ने इमरजेंसी हटाने का फैसला किया. उन्होंने अपने प्रिंसिपल सेक्रेटरी पृथ्वीनाथ धर से कहा, 'मैं इमरजेंसी ख़त्म करने जा रही हूं. देश में नए सिरे से चुनाव होंगे. मैं जानती हूं कि मैं चुनाव हार जाऊंगी. लेकिन इस फैसले पर अमल करना बेहद जरूरी है. इस बात का किसी को पता नहीं चलना चाहिए. संजय को भी नहीं.'
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