संतों को जल समाधि ही क्यों देते हैं? जानें इसके पीछे का धार्मिक और आध्यात्मिक कारण

अक्सर लोगों के मन में यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर साधु-संतों को जल समाधि क्यों दी जाती है, जबकि सनानत धर्म में किसी की मृत्यु के बाद उसके शरीर को जलाने की परंपरा है.

Feb 12, 2025 - 11:32
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संतों को जल समाधि ही क्यों देते हैं? जानें इसके पीछे का धार्मिक और आध्यात्मिक कारण

राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का बुधवार को निधन हो गया. आचार्य सत्येंद्र दास को कल दोपहर तकरीबन 12 बजे सरयू नदी में जल समाधि दी जाएगी. संतों के जल समाधि को लेकर अक्सर लोगों के मन में यह सवाल रहता है कि आखिर उन्हें जल समाधि क्यों दी जाती है? जबकि सनातन धर्म में अंतिम संस्कार के दौरान शव को जलाने की परंपरा है. आइए जानते हैं कि जल समाधि क्या होती है और यह संतों के लिए क्यों जरूरी होता है. 

संतों को जल समाधि देने की परंपरा भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में प्राचीन काल से चली आ रही है. यह एक विशेष प्रकार की समाधि होती है, जिसमें संतों के पार्थिव शरीर को जल में प्रवाहित किया जाता है. इसके पीछे धार्मिक, आध्यात्मिक और व्यवहारिक कारण होते हैं

जल समाधि का क्या है आध्यात्मिक कारण

मोक्ष की प्राप्ति- ऐसा माना जाता है कि जल समाधि से आत्मा को शीघ्र मोक्ष की प्राप्ति होती है, क्योंकि जल को पवित्र और शुद्ध करने वाला तत्व माना गया है.

पंचतत्व में विलीन होना- धार्मिक मान्यता के अनुसार, मानव शरीर पांच तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना होता है. जल समाधि में शरीर को जल में विलीन कर दिया जाता है, जिससे यह अपने मूल तत्व में लौट जाता है.

संतों का संन्यासी जीवन- संन्यासियों का शरीर आम लोगों से भिन्न माना जाता है, क्योंकि वे सांसारिक मोह-माया से दूर रहते हैं. इसलिए उन्हें जल में प्रवाहित कर प्राकृतिक रूप से शरीर का विलय कर दिया जाता है.

पूज्य माना जाता है संतों का शरीर  

सनातन धर्म में यह मान्यता है कि संतों का शरीर तप, साधना और ईश्वरीय शक्ति से परिपूर्ण होता है. इसलिए उनके शरीर का दाह संस्कार न कर जल में समर्पित किया जाता है.

विशेष तीर्थस्थलों पर जल समाधि

धार्मिक मान्यतानुसार, गंगा, नर्मदा, सरस्वती, गोदावरी जैसी पवित्र नदियों में जल समाधि दी जाती है, जिससे संतों की दिव्य ऊर्जा संपूर्ण ब्रह्मांड में फैल सके.

दाह-संस्कार के बजाय जल समाधि क्यों

कई मठों और अखाड़ों में यह परंपरा रही है कि संतों का अंतिम संस्कार अग्नि में करने के बजाय जल में किया जाए, जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान न हो. वहीं, कुछ स्थानों पर संतों को भूमि समाधि देने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं होता, इसलिए जल समाधि दी जाती है.

कौन-कौन से संन्यासी जल समाधि ग्रहण करते हैं?

आमतौर पर निर्वाण प्राप्त संन्यासी, नागा साधु, अखाड़ों के प्रमुख संत या वे संन्यासी जो जीवनभर तपस्या में लीन रहे, उन्हें जल समाधि दी जाती है.

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