सुप्रीम कोर्ट ने मुवक्किल की सलाह पर वकीलों को समन जारी करने पर जताई चिंता, कहा- यह अस्वीकार्य है

Jun 25, 2025 - 12:03
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सुप्रीम कोर्ट ने मुवक्किल की सलाह पर वकीलों को समन जारी करने पर जताई चिंता, कहा- यह अस्वीकार्य है

सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृष्टया अपना मत व्यक्त किया कि मुवक्किल की सूचना या दी गई सलाह के संबंध में अभियोजन एजेंसियों/पुलिस द्वारा कानूनी पेशेवरों को बुलाना अस्वीकार्य है और यह कानूनी पेशे की स्वायत्तता के लिए खतरा है। कोर्ट ने कहा, "कानूनी पेशा न्याय प्रशासन की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। जो वकील अपनी कानूनी प्रैक्टिस में लगे हुए हैं, उन्हें कुछ अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त हैं, जो इस तथ्य के कारण गारंटीकृत हैं कि वे कानूनी पेशेवर हैं और वैधानिक प्रावधानों के कारण भी। जांच एजेंसियों/पुलिस को किसी दिए गए मामले में पक्षों को सलाह देने वाले बचाव पक्ष के वकीलों को सीधे बुलाने की अनुमति देना कानूनी पेशे की स्वायत्तता को गंभीर रूप से कमजोर करेगा और यहां तक कि न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए सीधा खतरा भी पैदा करेगा।"

कोर्ट ने याचिकाकर्ता-वकील की इस दलील को भी प्रथम दृष्टया उचित पाया कि वकील मुवक्किल की सूचना और दी गई सलाह की निजता बनाए रखने के लिए पेशेवर कर्तव्य से बंधे हैं। याचिकाकर्ता ने कहा था, "जांच एजेंसियों/पुलिस को ऐसे वकीलों को बुलाने की अनुमति देना, जो मामले में वकील के रूप में कार्यरत हैं या जिन्होंने पक्षों को सलाह दी है, वकीलों के अधिकारों का उल्लंघन है। साथ ही कानूनी पेशे की स्वायत्तता को भी गंभीर रूप से खतरा है।"

जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की और इस स्तर पर व्यापक विचार के लिए दो प्रश्न निर्धारित किए: (i) जब कोई व्यक्ति किसी मामले से केवल पक्ष को सलाह देने वाले वकील के रूप में जुड़ा होता है तो क्या जांच एजेंसी/अभियोजन एजेंसी/पुलिस सीधे वकील को पूछताछ के लिए बुला सकती है? (ii) यह मानते हुए कि जांच एजेंसी/अभियोजन एजेंसी/पुलिस के पास ऐसा मामला है, जिसमें व्यक्ति की भूमिका केवल वकील के रूप में नहीं है, बल्कि कुछ और है, तब भी क्या उन्हें सीधे बुलाने की अनुमति दी जानी चाहिए या उन असाधारण मानदंडों के लिए न्यायिक निगरानी निर्धारित की जानी चाहिए?

न्यायालय ने कहा, "जो बात दांव पर लगी है, वह है न्याय प्रशासन की प्रभावकारिता और वकीलों की कर्तव्यनिष्ठा से तथा उससे भी महत्वपूर्ण बात निडरता से अपने पेशेवर कर्तव्यों का निर्वहन करने की क्षमता। चूंकि यह मामला सीधे न्याय प्रशासन पर प्रभाव डालता है, इसलिए किसी पेशेवर को जांच एजेंसी/अभियोजन एजेंसी/पुलिस के इशारे पर काम करने देना, जहां वह मामले में वकील है, प्रथम दृष्टया अस्वीकार्य प्रतीत होता है।" मामले के महत्व को देखते हुए न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा, SCBA के अध्यक्ष विकास सिंह और SCAORA के अध्यक्ष विपिन नायर की सहायता मांगी। मामले को उचित निर्देशों के लिए सीजेआई बीआर गवई के समक्ष रखा गया था।

मामला गुजरात में प्रैक्टिस करने वाले वकील से संबंधित है, जिसे ऋण विवाद से उत्पन्न जमानत मामले में अपने मुवक्किल के लिए पेश होने के बाद तलब किया गया था। दावों के अनुसार, अभियुक्त के वकील होने के अलावा उनकी कोई भूमिका नहीं थी और उन्हें "मामले के तथ्यों और परिस्थितियों का सही विवरण" पता लगाने के लिए BNSS की धारा 179 के तहत नोटिस जारी किया गया था। याचिकाकर्ता ने शुरू में नोटिस के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उनकी याचिका खारिज कर दी गई। व्यथित होकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस तरह के नोटिस जारी करना अनुचित पाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात राज्य को अगले आदेश तक याचिकाकर्ता को बुलाने से रोक दिया। न्यायालय ने प्रतिवादी-राज्य को नोटिस जारी करते हुए आदेश दिया, "दिनांक [...] के नोटिस और याचिकाकर्ता को जारी किए गए ऐसे अन्य नोटिसों के संचालन पर रोक रहेगी।" बता दें, सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर वकीलों को हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा मुवक्किल को दी गई कानूनी सलाह के लिए बुलाया गया था। वकीलों की स्वायत्तता के लिए खतरे के कारण सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लेने की मांग करने वाले कानूनी समुदाय द्वारा विरोध के बाद अंततः समन वापस ले लिया गया।

Case Title: ASHWINKUMAR GOVINDBHAI PRAJAPATI Versus STATE OF GUJARAT AND ANR., SLP(Crl) No. 9334/2025

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