मजिस्ट्रेट का गवाहों को वॉइस सैंपल देने का निर्देश देना अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Oct 14, 2025 - 11:41
 0  10
मजिस्ट्रेट का गवाहों को वॉइस सैंपल देने का निर्देश देना अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट न केवल अभियुक्तों से बल्कि गवाहों से भी वॉइस सैंपल लेने का निर्देश दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे सैंपल, चाहे वॉइस, उंगलियों के निशान, लिखावट या DNA हों, साक्ष्य के बजाय भौतिक साक्ष्य होते हैं, इसलिए अनुच्छेद 20(3) के तहत आत्म-दोषसिद्धि के विरुद्ध संवैधानिक संरक्षण का उल्लंघन नहीं करते हैं। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने 2019 के रितेश सिन्हा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले के उदाहरण का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि दंड प्रक्रिया संहिता में स्पष्ट प्रावधान न होने पर भी न्यायिक मजिस्ट्रेट को किसी "व्यक्ति" को जांच के लिए आवाज़ का नमूना देने का निर्देश देने का अधिकार है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि "व्यक्ति" शब्द केवल अभियुक्त तक ही सीमित नहीं है, बल्कि गवाहों पर भी लागू होता है।

रितेश सिन्हा मामले में यह माना गया कि CrPC में स्पष्ट प्रावधानों के अभाव के बावजूद, न्यायिक मजिस्ट्रेट को किसी व्यक्ति को अपराध की जांच के लिए उसका वॉइस सैंपल देने का आदेश देने का अधिकार दिया जाना चाहिए। हम विशेष रूप से ध्यान दिलाते हैं कि इस कोर्ट ने केवल अभियुक्त के बारे में बात नहीं की और जानबूझकर 'व्यक्ति' शब्द का प्रयोग किया, क्योंकि आत्म-दोषसिद्धि के विरुद्ध नियम किसी भी व्यक्ति पर समान रूप से लागू होता है, चाहे वह अभियुक्त हो या गवाह।

यह मामला 2021 में एक युवती की मृत्यु से जुड़ी घटना से उत्पन्न हुआ, जिसके कारण उसके परिवार और उसके ससुराल वालों के बीच आरोप-प्रत्यारोप लगे। जांच के दौरान, पुलिस ने आरोप लगाया कि एक प्रमुख गवाह (दूसरा प्रतिवादी) ने मृतक के पिता के एजेंट के रूप में काम किया और एक अन्य गवाह को धमकाया। जांच अधिकारी ने रिकॉर्ड की गई बातचीत से तुलना करने के लिए इस व्यक्ति से वॉइस सैंपल मांगा और मजिस्ट्रेट ने अनुरोध स्वीकार कर लिया।

गवाह ने मजिस्ट्रेट के आदेश को कलकत्ता हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसने इसे खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने तर्क दिया कि इस तरह के निर्देशों की अनुमति है या नहीं, यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी पीठ के समक्ष लंबित है। हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए जस्टिस चंद्रन द्वारा लिखित फैसले में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि केवल एक बड़ी पीठ के समक्ष मामले के लंबित रहने से सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि रितेश सिन्हा मामले के फैसले ने मजिस्ट्रेटों को अन्य भौतिक साक्ष्यों की तरह वॉइस सैंपल दर्ज करने का अधिकार दिया, जब तक कि यह प्रावधान प्रक्रियात्मक कानून में शामिल नहीं हो जाता।

यह देखते हुए कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 349 में मजिस्ट्रेटों को वॉइस सैंपल दर्ज करने की अनुमति देने वाला प्रावधान विशेष रूप से शामिल किया गया, कोर्ट ने कहा कि वॉइस सैंपल लेना गवाही संबंधी बाध्यता नहीं है, बल्कि केवल भौतिक या भौतिक साक्ष्य है, जैसे उंगलियों के निशान, लिखावट या DNA। इसलिए अनुच्छेद 20(3) लागू नहीं होता। अदालत ने रितेश सिन्हा के मामले का हवाला देते हुए कहा, "यदि यह BNSS लागू है तो इस तरह के नमूने लेने के लिए विशिष्ट प्रावधान है। तर्क यह भी था कि केवल फिंगरप्रिंट, हस्ताक्षर या राइटिंग सैंपल देने से व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसकी तुलना जांच में प्राप्त सामग्री से की जानी चाहिए, जो अकेले ही सैंपल देने वाले व्यक्ति को दोषी ठहरा सकती है, जो गवाही देने की बाध्यता के अंतर्गत नहीं आएगा। इस प्रकार यह आत्म-दोषसिद्धि के विरुद्ध नियम का उल्लंघन नहीं होगा।" रितेश सिन्हा के मामले में बॉम्बे राज्य बनाम काठी कालू ओघड़, एआईआर 1961 एससी 1808 का हवाला दिया गया था। तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई और मजिस्ट्रेट का आदेश बरकरार रखा गया।

Cause Title: Rahul Agarwal Versus The State of West Bengal & Anr.

साभार