S.483(3) BNSS | सेशन कोर्ट द्वारा शर्तों के उल्लंघन के अभाव में दी गई जमानत हाईकोर्ट रद्द नहीं कर सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

Jul 3, 2025 - 12:19
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S.483(3) BNSS | सेशन कोर्ट द्वारा शर्तों के उल्लंघन के अभाव में दी गई जमानत हाईकोर्ट रद्द नहीं कर सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि जमानत की शर्तों के उल्लंघन के अभाव में किसी आरोपी को जमानत देने वाले सेशन कोर्ट के आदेश को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 483(3) के तहत आवेदन दायर करके हाईकोर्ट के समक्ष रद्द करने की मांग नहीं की जा सकती। एकल जज जस्टिस वी श्रीशानंद ने बलात्कार पीड़िता की मां द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसमें यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के प्रावधानों के तहत आरोपी को जमानत दिए जाने को चुनौती दी गई। उनका कहना था कि इस तरह के गंभीर अपराध के लिए जमानत दिए जाने से न्याय का हनन हुआ है।

न्यायालय ने कहा, "भले ही इस न्यायालय में स्पेशल कोर्ट या सेशन कोर्ट के साथ-साथ जमानत देने या रद्द करने की समवर्ती शक्तियां निहित हों, लेकिन जमानत रद्द करने की मांग करने वाले आवेदन को इस तरह नहीं समझा जाना चाहिए कि यह जमानत देने के आदेश पर अपील है। यहां तक कि BNSS, 2023 में भी विधायिका द्वारा ऐसा कोई प्रावधान नहीं बनाया गया, जिससे जमानत देने के विवेकाधीन आदेश पर पुनर्विचार या अपील की शक्ति निहित हो।"

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि यह दलील इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सुनवाई योग्य है कि जमानत रद्द करने की अनुमति या तो उस न्यायालय के समक्ष है, जिसने जमानत दी है या हाईकोर्ट के समक्ष, कानून द्वारा निहित समवर्ती शक्ति को ध्यान में रखते हुए। इसके अलावा, सेशन जज द्वारा लगाई गई शर्तों के किसी भी उल्लंघन की अनुपस्थिति में भी BNSS, 2023 की धारा 483(3) के तहत आवेदन दायर करके जमानत देने पर ही हाईकोर्ट के समक्ष सवाल उठाया जा सकता है।

अभियोजन पक्ष ने दलील का विरोध करते हुए कहा कि जमानत देने का आदेश विवेकाधीन है और किसी बाध्यकारी परिस्थिति के अभाव में एक बार जमानत दिए जाने के बाद उसे रद्द नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि सामान्य नियम के अनुसार, जमानत रद्द करने की मांग करने वाला आवेदन उस न्यायालय के समक्ष दायर किया जाना चाहिए, जिसने जमानत दी है, क्योंकि उस न्यायालय को जमानत दिए जाने के तथ्यों का विशेष ज्ञान है। हाईकोर्ट के समक्ष जमानत रद्द करने की मांग करने के लिए बाध्यकारी परिस्थितियां या जमानत शर्तों का उल्लंघन होना चाहिए।

“BNSS, 2023 की धारा 483(3) को CrPC की धारा 439(2) के समान ही बरकरार रखा गया। यदि विधायिका की यह राय है कि विवेकाधीन आदेश के मामले में भी यदि न्यायालय द्वारा उचित विवेक का प्रयोग नहीं किया जाता तो ऐसे आदेश भी संशोधन या अपील का विषय हो सकते हैं तो अनिवार्य रूप से विधायिका को हाईकोर्ट में सेशन कोर्ट या स्पेशल कोर्ट के विरुद्ध ऐसी शक्ति प्रदान करनी चाहिए।” इस प्रकार इसने माना कि BNSS, 2023 की धारा 483(3) या BNSS, 2023 के किसी अन्य प्रावधान के तहत हाईकोर्ट में ऐसी कोई शक्ति निहित नहीं होने और POCSO Act में भी ऐसी कोई शक्ति नहीं होने के कारण एक बार दी गई जमानत को केवल पूछने पर रद्द नहीं किया जा सकता।

हालांकि, इसने स्पष्ट किया, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि जमानत देते समय न्यायालय द्वारा कोई गंभीर और गंभीर त्रुटि की गई तो भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पर्यवेक्षी शक्ति के तहत और CrPC की धारा 482 के तहत इस न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति का आह्वान करके उस पर सवाल उठाया जा सकता है।” तदनुसार, इसने याचिका को खारिज कर दिया। Case Title: Devibai AND State of Karnataka & ANR

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