भूमि स्वामी के अधिमान्य अधिकार को समाप्त किए बिना भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Aug 25, 2025 - 10:45
 0  19
भूमि स्वामी के अधिमान्य अधिकार को समाप्त किए बिना भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

मुंबई के कुर्ला में झुग्गी पुनर्वास के उद्देश्य से भूमि के टुकड़े के अधिग्रहण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि झुग्गी अधिनियम का अध्याय 1-A, राज्य, झुग्गी पुनर्वास प्राधिकरण (SRA), अधिभोगियों और अन्य हितधारकों के मुकाबले, भूमि के पुनर्विकास के लिए भूमि स्वामी को अधिमान्य अधिकार प्रदान करता है। न्यायालय ने कहा SRA अनिवार्य रूप से भूमि स्वामी को झुग्गी पुनर्वास योजना के लिए प्रस्ताव आमंत्रित करते हुए नोटिस जारी करेगा और भूमि स्वामी को "उचित अवधि के भीतर" झुग्गी पुनर्वास (SR) योजना प्रस्तुत करनी होगी।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने यह भी कहा कि मलिन बस्ती अधिनियम की धारा 14 [अर्थात, महाराष्ट्र मलिन बस्ती क्षेत्र (सुधार, निकासी और पुनर्विकास) अधिनियम, 1971] के तहत राज्य द्वारा अधिग्रहण, भूस्वामी के अधिमान्य अधिकार के समाप्त होने तक जारी रहेगा। अंत में न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि मलिन बस्ती अधिनियम के तहत मलिन बस्ती पुनर्वास का ढांचा "खराब ढंग से संरचित" है। हालांकि, चूंकि विवादित कार्यवाहियां अधिनियम के 2018 के संशोधन से पहले हुईं, इसलिए उसने इस मुद्दे पर और गहराई से विचार नहीं किया।

न्यायालय ने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि इस बात का कोई ठोस कारण नहीं है कि धारा 1-ए के अंतर्गत एक स्व-निहित संहिता बनाने के बजाय इस कानून के प्रारूपकारों ने धारा 3डी के माध्यम से मौजूदा कानून में संशोधन करके एक पूरी तरह से अलग मलिन बस्ती पुनर्वास तंत्र को शामिल करने का विकल्प क्यों चुना। प्रारूपण का यह तरीका अनिवार्य रूप से दोनों ढांचों के बीच की सीमाओं को धुंधला कर देता है, जिससे पाठक के मन में भ्रम पैदा होता है।"

तथ्यात्मक पृष्ठभूमि यह भूमि 1970 से इंडियन कॉर्क मिल्स प्राइवेट लिमिटेड (ICM) के स्वामित्व में है। इस पर झोपड़ीवासियों ने अतिक्रमण कर लिया और इसके एक हिस्से को स्लम अधिनियम की धारा 4 के तहत 'स्लम एरिया' घोषित कर दिया गया। समय के साथ स्लम का विस्तार हुआ और इसके निवासियों ने 2002 में याचिकाकर्ता-सोसाइटी (ताराबाई नगर हाउसिंग सोसाइटी) का गठन किया। 11.03.2011 की अधिसूचना के तहत SRA ने पूरी भूमि को एसआर एरिया घोषित कर दिया। इसके बाद ताराबाई सोसाइटी ने अधिकारियों से पुनर्विकास के लिए भूमि अधिग्रहित करने का अनुरोध किया।

भूमि मालिक-ICM के जवाब के अभाव में संबंधित एडिशनल कलेक्टर ने भूमि अधिग्रहित करने की सिफारिश की। 2012 में एक रिपोर्ट महाराष्ट्र सरकार को भेजी गई। बाद में ICM को नोटिस दिया गया, जिसका उसने जवाब दिया और SR योजना के माध्यम से भूमि का स्वयं पुनर्विकास करने की इच्छा व्यक्त की। 2013 में मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने यह देखते हुए अधिनियम की धारा 14 के तहत भूमि अधिग्रहण की सिफ़ारिश की कि ICM ने पुनर्विकास के लिए इच्छा व्यक्त की थी, लेकिन कोई SR योजना प्रस्तावित नहीं की थी। राज्य सरकार ने 2016 में भूमि अधिग्रहण के लिए अधिसूचना जारी की। इससे व्यथित होकर ICM ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने विवादित निर्णय के तहत अधिग्रण रद्द कर दिया औरSRA को ICM के प्रस्ताव पर शीघ्र विचार करने का निर्देश दिया। यह पाया गया कि राज्य और SRA ने ICM को अपनी SR योजना प्रस्तुत करने का उचित अवसर दिए बिना ही अधिग्रहण कर लिया। हाईकोर्ट के निर्णय का विरोध करते हुए याचिकाकर्ता-सोसायटी, महाराष्ट्र राज्य और SRA ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। Case Title: Tarabai Nagar Co-Op. Hog. Society (Proposed) versus The State of Maharashtra and others, SLP(C) No.19774/2018

साभार