भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत स्टाम्प विक्रेता 'लोक सेवक'; स्टाम्प पेपर बिक्री पर रिश्वत के लिए उत्तरदायी : सुप्रीम कोर्ट

May 2, 2025 - 11:47
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भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत स्टाम्प विक्रेता 'लोक सेवक'; स्टाम्प पेपर बिक्री पर रिश्वत के लिए उत्तरदायी : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेखनीय निर्णय में कहा कि स्टाम्प विक्रेता भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत "लोक सेवक" की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं। इसलिए भ्रष्ट आचरण के लिए पीसी एक्ट के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।

कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति द्वारा किए जा रहे कर्तव्य की प्रकृति ही यह निर्धारित करते समय सर्वोपरि महत्व रखती है कि ऐसा व्यक्ति पीसी एक्ट के तहत परिभाषित लोक सेवक की परिभाषा के दायरे में आता है या नहीं।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा,

"देश भर में स्टाम्प विक्रेता महत्वपूर्ण सार्वजनिक कर्तव्य निभाने और ऐसे कर्तव्य के निर्वहन के लिए सरकार से पारिश्रमिक प्राप्त करने के कारण निस्संदेह पीसी एक्ट की धारा 2(सी)(आई) के दायरे में लोक सेवक हैं।"

खंडपीठ दिल्ली हाईकोर्ट के उस निर्णय के विरुद्ध अपील पर निर्णय कर रही थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट के उस निर्णय की पुष्टि की गई। इसमें अपीलकर्ता को पीसी एक्ट की धारा 7 और 13(1)(डी) के साथ धारा 13(2) के तहत अपराध का दोषी ठहराया गया था।

आरोप यह था कि अपीलकर्ता स्टाम्प विक्रेता है। उसने 10 रुपये मूल्य के स्टाम्प पेपर के लिए 2 रुपये की अतिरिक्त मांग की। क्रेता द्वारा दायर की गई शिकायत के आधार पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने 'ट्रैप' साक्ष्य के आधार पर कार्यवाही शुरू की।

अपीलकर्ता द्वारा उठाए गए मुख्य तर्कों में से एक यह था कि वह पीसी एक्ट के अंतर्गत नहीं आता है, क्योंकि वह निजी विक्रेता है। न्यायालय ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक कर्तव्य के निष्पादन के लिए फीस या कमीशन के रूप में पारिश्रमिक पाता है तो वह "लोक सेवक" होगा। गुजरात राज्य बनाम मनसुखभाई कांजीभाई शाह के निर्णय का संदर्भ दिया गया, जिसमें कहा गया था कि एक डीम्ड यूनिवर्सिटी पीसी एक्ट के दायरे में आएगी।

स्टाम्प एक्ट के विभिन्न प्रावधानों और संबंधित नियमों का हवाला देते हुए जस्टिस पारदीवाला द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि जिस रियायती मूल्य पर विक्रेता सरकार से स्टाम्प पेपर खरीदते हैं, वह पारिश्रमिक के रूप में कार्य करता है। साथ ही स्टाम्प पेपर बेचना एक सार्वजनिक कर्तव्य है।

न्यायालय ने कहा,

"इस मामले में अपीलकर्ता अपने पास मौजूद लाइसेंस के कारण स्टाम्प पेपर की खरीद पर छूट प्राप्त करने का पात्र था। इसके अलावा, छूट राज्य सरकार द्वारा बनाए गए 1934 के नियमों से जुड़ी है और उसके द्वारा शासित है। इस प्रकार, अपीलकर्ता को बिना किसी संदेह के पीसी एक्ट की धारा 2(सी)(आई) के प्रयोजनों के लिए "सरकार द्वारा पारिश्रमिक" कहा जा सकता है।"

न्यायालय ने कहा,

स्टाम्प शुल्क प्राप्त करने का उद्देश्य स्टाम्प विक्रेताओं को पारिश्रमिक देने के सरकार के प्रयासों के पीछे के उद्देश्य को पुष्ट करता है। इस प्रकार, अपीलकर्ता को प्रासंगिक समय पर सरकार द्वारा पारिश्रमिक दिया जा रहा था। निस्संदेह, अपीलकर्ता एक ऐसे कर्तव्य का निर्वहन कर रहा था जिसमें राज्य और जनता दोनों का हित है, जो फिर भी उसे पीसी एक्ट के तहत परिभाषित लोक सेवक के दायरे में लाता है।"

साथ ही गुण-दोष के आधार पर, न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष अवैध रिश्वत की मांग और उसके स्वीकृति के आरोप को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है। इसलिए दोषसिद्धि रद्द कर दी गई।

केस टाइटल: अमन भाटिया बनाम राज्य (दिल्ली की जीएनसीटी)

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