रहस्यों से भरा पड़ा है जगन्नाथ पुरी मंदिर, चार दरवाजों का ये राज आपको भी नहीं पता होगा
जगन्नाथ मंदिर के शीर्ष पर ध्वज हवा की विपरीत दिशा में लहराता है. यहां पुजारी पिछले 1,800 सालों से हर दिन ध्वज बदलने के लिए मंदिर के शीर्ष पर चढ़ता है. ऐसा माना जाता है कि अगर एक दिन के लिए भी यह अनुष्ठान छोड़ दिया जाए, तो मंदिर 18 साल तक बंद रहेगा.
ओडिशा में भाजपा ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत हासिल की और बीजू जनता दल (BJD) को करारी शिकस्त दी, जिसने करीब 25 साल तक राज्य पर शासन किया. अपने चुनावी वादे में भाजपा ने कहा था कि सत्ता में आने पर वह पुरी के जगन्नाथ मंदिर के चारों द्वार श्रद्धालुओं के लिए खोल देगी और उसने ऐसा किया भी.
गुरुवार को 12वीं सदी के इस भव्य मंदिर के चारों द्वार जनता के लिए खोल दिए गए, जो कोविड-19 महामारी के बाद से बंद थे.
सिंहद्वार (Singhadwara) को छोड़कर मंदिर के तीन द्वार बंद होने से श्रद्धालुओं को 'पवित्र त्रिदेव' के दर्शन करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. बता दें कि अश्वद्वार (Ashwadwara), व्याघ्रद्वार (Vyaghradwara), हस्तीद्वार (Hastidwara) गुरुवार तक बंद रहे.
अपनी पहली कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री मोहन माझी ने चारों द्वार बंद होने से श्रद्धालुओं को होने वाली असुविधा का हवाला दिया. उन्होंने मंदिर के सौंदर्यीकरण और मरम्मत के लिए 500 करोड़ रुपये देने की भी घोषणा की है.
जानें पुरी के जगन्नाथ मंदिर के चार दरवाजों का क्या है महत्व?
दरअसल, मंदिर की बाहरी दीवार पर चार द्वार हैं, जो चार अलग-अलग दिशाओं में खुलते हैं. इन चार द्वारों का प्रतिनिधित्व चार जानवर करते हैं.
पूर्व दिशा में शेर हैं और इसलिए इसे 'सिंहद्वार' या Lion Gate कहा जाता है. वहीं, पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व बाघ करते हैं और इसलिए इसे 'व्याघ्रद्वार' या Tiger Gate कहते हैं. मंदिर की दीवार की उत्तरी दिशा का प्रतिनिधित्व हाथियों द्वारा किया जाता है, इसलिए इसे 'हस्तीद्वार' या Elephant Gate कहा जाता है. घोड़ों द्वारा दर्शाई गई दक्षिणी दिशा को 'अश्वद्वार' या Horse Gate कहा जाता है.
- सिंहद्वार (Singhadwara): सिंहद्वार पर झुकी हुई दो शेर की मूर्तियां मोक्ष का प्रतीक हैं. इसका नाम भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के नाम पर रखा गया है. भगवान जगन्नाथ को भी भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. ऐसे में प्रचलित मान्यता के अनुसार, अगर कोई भक्त इस द्वार से मंदिर में प्रवेश करता है, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- व्याघ्रद्वार (Vyaghradwara): बाघ धर्म का प्रतीक है, जो हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण फिलॉसफी है. हर एक क्षण में, आध्यात्मिक साधक को अपने धर्म का पालन करने की आवश्यकता होती है. व्याघ्रद्वार से मंदिर में प्रवेश करने से भक्त को अपने धर्म की याद आती है और आत्मा को बल मिलता है. ऋषि और विशेष भक्त इस द्वार से मंदिर में प्रवेश करते हैं.
- हस्तिद्वार (Hastidwara): इसके दोनों ओर हाथियों की विशाल आकृति है. हाथी को धन की देवी - महा लक्ष्मी का वाहन माना जाता है. धन की चाह रखने वाले भक्त इस द्वार से मंदिर में प्रवेश करते हैं.
- अश्वद्वार (Ashvadwara): घोड़ा प्रतीकात्मक रूप से 'काम' या 'वासना' का प्रतिनिधित्व करता है. द्वार के पास युद्ध की महिमा में जगन्नाथ और बलभद्र के साथ दो सरपट दौड़ते घोड़े हैं. एक किंवदंती के अनुसार, भक्त इस द्वार से प्रवेश करते समय वासना की भावना का त्याग करते हैं. इसे जीत का मार्ग भी कहा जाता है. राजा युद्ध जीतने के लिए भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए इस द्वार से मंदिर में प्रवेश करते थे.
- जानें जगन्नाथ मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य
पुरी जगन्नाथ मंदिर भारत के चार धाम तीर्थ स्थलों में से एक है. अन्य तीन धाम बद्रीनाथ, द्वारका और रामेश्वरम हैं. हर साल भगवान जगन्नाथ मंदिर के दर्शन के लिए लाखों भक्त ओडिशा के पुरी में आते हैं. भगवान जगन्नाथ, जो भगवान श्रीकृष्ण का ही रूप हैं, वह अपने बड़े भाई भगवान बलभद्र और छोटी बहन देवी सुभद्रा के साथ मंदिर में मौजूद हैं. आज हम आपको इस मंदिर से जुड़े कुछ अहम त्थ्यों के बारे में बताएंगे, जिनके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे.
1. मंदिर के शीर्ष पर ध्वज हवा की विपरीत दिशा में लहराता है. यहां पुजारी 1,800 वर्षों से हर दिन ध्वज बदलने के लिए मंदिर के शीर्ष पर चढ़ता है. ऐसा माना जाता है कि अगर एक दिन के लिए भी अनुष्ठान छोड़ दिया जाता है, तो मंदिर 18 साल तक बंद रहेगा. मंदिर 45 मंजिला इमारत जितना ऊंचा है और बिना किसी सुरक्षा उपकरण के नंगे हाथों से ध्वज बदला जाता है.
2. जगन्नाथ जी की मूर्ति लकड़ी से बनी है और हर 12 या 19 साल में एक प्रतिकृति द्वारा औपचारिक रूप से प्रतिस्थापित की जाती है, जो कि अधिकांश हिंदू मंदिरों में पाए जाने वाले पत्थर और धातु के प्रतीकों के विपरीत है. इस उद्देश्य के लिए सख्त विनिर्देशों वाले पवित्र नीम के पेड़ों का उपयोग किया जाता है. इस पर नक्काशी 21 दिनों के लिए चुने हुए कारपेंटर द्वारा गुप्त रूप से की जाती है. वहीं, पुरानी मूर्तियों को कोइली वैकुंठ में दफनाया जाता है. आखिरी नवकलेवर अनुष्ठान 2015 में हुआ था, जिसे लाखों लोगों ने देखा था.
3. यह एक वास्तुशिल्प कला या केवल एक चमत्कार है कि चाहे दिन का कोई भी समय हो या सूरज की रोशनी कहीं भी पड़ रही हो, मंदिर की छाया नहीं बनती है.
4. भगवान जगन्नाथ को महाप्रसाद पांच चरणों में परोसा जाता है और इसमें सूखे मिष्ठान्न से लेकर 'शंखुड़ी' चावल, दाल और अन्य वस्तुओं तक 56 स्वादिष्ट व्यंजन शामिल होते हैं. यह मंदिर परिसर में ही स्थित आनंद बाजार में भक्तों के लिए उपलब्ध है.
5. एक बार जब कोई भक्त मंदिर में प्रवेश करता है, तो उसे लहरों की आवाज सुनाई नहीं देती. मिथक के अनुसार, देवी सुभद्रा की इच्छा थी कि मंदिर शांति का स्थान हो, और उन्हें प्रसन्न करने के लिए, मंदिर में समुद्र की लहरों की आवाज नहीं आती.
6. मंदिर के ऊपर कोई पक्षी, यहां तक कि एक प्लेन भी मंडराता हुआ नहीं दिखाई देता. मंदिर के ऊपर कोई पक्षी भी बैठा हुआ नहीं दिखाई देता. इसका कोई तार्किक स्पष्टीकरण नहीं है.
7. मंदिर के शीर्ष पर एक टन वजन का 'भाग्य चक्र' रखा गया है. चक्र के बारे में तथ्य यह है कि यह पुरी में किसी भी एंगल या ऊंचाई से देखने पर दर्शकों को एक जैसा दिखाई देगा.
8. यह एक प्राकृतिक घटना है कि दिन के समय हवा समुद्र से जमीन की ओर और शाम को जमीन से समुद्र की ओर बहती है. लेकिन पुरी में इसके विपरीत होता है.
9. हर साल लाखों भक्त रथ यात्रा के दौरान मंदिर आते हैं या भगवान जगन्नाथ के दर्शन करते हैं. हर दिन एक ही मात्रा में भोजन पकाया जाता है. कोई भी भोजन कभी बर्बाद नहीं होता और न ही कोई भक्त भूखा रह जाता है.
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