सेशन कोर्ट के CrPC की धारा 439(2) के तहत याचिका खारिज किए जाने के बाद ज़मानत रद्द करने के लिए हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

Sep 23, 2025 - 11:21
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सेशन कोर्ट के CrPC की धारा 439(2) के तहत याचिका खारिज किए जाने के बाद ज़मानत रद्द करने के लिए हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 439(2) और धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करके ज़मानत रद्द करने की याचिका हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की जा सकती है, भले ही सेशन कोर्ट ने CrPC की धारा 439(2) के तहत रद्द करने की अर्ज़ी पहले ही अस्वीकार कर दी हो। अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि एक बार सेशन कोर्ट द्वारा CrPC की धारा 439(2) के तहत ज़मानत रद्द करने की अर्ज़ी खारिज कर दिए जाने के बाद उसी प्रावधान के तहत दूसरी अर्ज़ी सीधे हाईकोर्ट के समक्ष दायर नहीं की जा सकती।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ केरल हाईकोर्ट द्वारा अभियुक्त की ज़मानत रद्द करने के फैसले के खिलाफ अपील पर विचार कर रही थी। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि सेशन कोर्ट द्वारा आवेदन खारिज कर दिए जाने के बाद पीड़ित पक्ष के पास एकमात्र उचित विकल्प सेशन जज के आदेश के विरुद्ध पुनर्विचार याचिका दायर करना या CrPC की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट के अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना होगा। इस तर्क से असहमत होते हुए अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में हाईकोर्ट के समक्ष आवेदन CrPC की धारा 482 सहपठित धारा 439(2) के अंतर्गत दायर किया गया। इसलिए हाईकोर्ट पर इस याचिका पर विचार करने के लिए अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करने से कोई रोक नहीं है।

आगे कहा गया, "हम मिस्टर चक्रवर्ती द्वारा उठाए गए तर्कों में से एक पर विचार करके अपना विश्लेषण शुरू करना उचित समझते हैं। उन्होंने हाईकोर्ट में दायर आवेदन की सुनवाई योग्यता को ही चुनौती दी। उनके अनुसार, जब सेशन जज द्वारा CrPC की धारा 439(2) के तहत ज़मानत रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी जाती है तो उसी प्रावधान के तहत दूसरी याचिका सीधे हाईकोर्ट में दायर नहीं की जा सकती। इसके बजाय, उचित तरीका यह होगा कि या तो सेशन जज के आदेश को पुनर्विचार याचिका में चुनौती दी जाए, या CrPC की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग किया जाए। हम इस तर्क से सहमत नहीं हैं। हम देखते हैं कि वर्तमान मामले में हाईकोर्ट के समक्ष आवेदन "CrPC की धारा 482 के साथ 439(2)" के तहत दायर किया गया। ऐसी स्थिति में हाईकोर्ट को अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करने से कोई नहीं रोक सकता।" हालांकि, गुण-दोष के आधार पर अदालत ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया।

Case : Abhimanue v. State of Kerala

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