काबिल महिला वकील से हार मंज़ूर नहीं, मगर नाकाम पुरुष से चलेगा: हाईकोर्ट जज जस्टिस शर्मिला देशमुख का करारा तंज
बॉम्बे हाईकोर्ट की जज जस्टिस शर्मिला देशमुख ने कानूनी पेशे में महिलाओं को मिलने वाली सीमित अवसरों पर खुलकर अपनी बात रखी और पुरुष प्रधान मानसिकता पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि आज भी वादकारियों की सोच है कि वे अयोग्य पुरुष वकील से केस हारना मंज़ूर कर लेंगे लेकिन एक काबिल महिला वकील से हारना नहीं। जस्टिस देशमुख ने कहा, "यह एक ऐसा सच है, जिसे सब जानते हैं मगर कोई स्वीकार नहीं करना चाहता। हमारा पेशा पुरुष प्रधान है। आम जनता की सोच यह है कि अगर हारना भी है तो पुरुष वकील के साथ हार जाएं मगर महिला वकील से नहीं।"
उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि महिलाओं को बराबरी का मंच नहीं दिया जाता, जिस वजह से उनकी प्रैक्टिस अपने आप सीमित रह जाती है। उन्होंने कहा, "अगर किसी महिला वकील को अवसर मिले तो वह पुरुषों से दोगुनी मेहनत करती है। मैं लिखकर दे सकती हूं कि वह हर मामले में 200% प्रयास करेगी। लेकिन जब मंच ही समान नहीं है तो अवसर कैसे मिलेंगे?" जस्टिस देशमुख ने यह भी कहा कि जब महिला जजों के पदों पर नियुक्ति की बात आती है तो योग्यता की नहीं बल्कि अवसरों की कमी सामने आती है।
उन्होंने इस संबंध में कहा, "ऐसा नहीं कि महिलाएं सक्षम नहीं हैं, लेकिन उन्हें सामने आने का मंच नहीं दिया गया। उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर ही नहीं मिलता। यह स्थिति अब बदलनी चाहिए।" अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा, "मैंने सीमित क्षेत्र में प्रैक्टिस की, लेकिन यह मेरी पसंद नहीं थी, यह हालात की मजबूरी थी। मैं हाईकोर्ट के उन जजों की आभारी हूं, जिन्होंने मेरी काबिलियत को पहचाना और मुझे जज बनने का अवसर दिया।"
बार काउंसिल से अपील जस्टिस देशमुख ने महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल से अपील की कि वे इस दिशा में ठोस कदम उठाएं ताकि महिला वकीलों को समान अवसर मिलें और वे न्यायपालिका में नेतृत्व की भूमिका निभा सकें। यह वक्तव्य उन्होंने मुंबई यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट और मुंबई सिटी सिविल व सेशंस कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित लेक्चर सीरीज़ के उद्घाटन सत्र में दिया, जिसका विषय "क्रिमिनल ट्रायल में व्यावहारिक दृष्टिकोण" था।
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