S.304 IPC | 'इरादा' और 'जानकारी' कैसे तय करते हैं कि अपराध सदोष मानव वध है, जो हत्या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने समझाया

Nov 12, 2025 - 14:50
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S.304 IPC | 'इरादा' और 'जानकारी' कैसे तय करते हैं कि अपराध सदोष मानव वध है, जो हत्या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने समझाया

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (10 नवंबर) को एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत हत्या के बजाय धारा 304 के भाग I के तहत सदोष मानव वध में बदल दिया। कोर्ट ने कहा कि दोषी का मृतक की हत्या करने का कोई इरादा नहीं था, हालांकि उसे पता था कि चोट लगने से उसकी मौत हो सकती है। जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने 1998 में अहमदाबाद में हुई एक घटना से संबंधित मामले की सुनवाई की, जिसमें अपीलकर्ता एक विवाद के बाद मृतक लुइस विलियम्स के घर गया, गालियां दीं और चाकू से वार करके उसे घायल कर दिया। पीड़ित का अस्पताल में इलाज किया गया, लेकिन 13 दिन बाद सेप्टीसीमिया के कारण उसकी मौत हो गई

हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए जस्टिस एनवी अंजारिया द्वारा लिखित फैसले में तर्क दिया गया कि चूंकि यह घटना एक विवाद के कारण हुई थी, इसलिए अपीलकर्ता का मृतक की हत्या करने का कोई पूर्व नियोजित इरादा नहीं था। अदालत ने कहा, “जहां अपीलकर्ता अभियुक्त के घर गया, जहां उसने मृतक को गालियाँ देना शुरू कर दिया और अंततः उस पर चाकू से हमला करके उसे घायल कर दिया। अपीलकर्ता की ओर से आवेग, क्रोध और आत्म-उत्तेजना का तत्व था”, जिससे यह हत्या नहीं, बल्कि गैर इरादतन हत्या का मामला बनता है।

खंडपीठ ने आगे कहा, “अपीलकर्ता के कृत्य को देखते हुए यह निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए कि अभियुक्त को इस ज्ञान के साथ दोषी ठहराया जा सकता है कि उसके हाथ में मौजूद हथियार का उपयोग करके उसे पहुंचाई जाने वाली चोटें सामान्य क्रम में मृत्यु का कारण बनने के लिए पर्याप्त होंगी।” मृत्यु का कारण बनने के इरादे और इस ज्ञान के बीच अंतर करते हुए कि किसी कार्य से मृत्यु होने की संभावना है, अदालत ने केसर सिंह एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य, (2008) 15 एससीसी 753 में अपने उदाहरण का विस्तार से उल्लेख किया, जिसमें कहा गया:

सदोष मानव वध एक वंश है, हत्या उसकी प्रजाति है। हत्या की विशेष विशेषताओं को छोड़कर, सदोष मानव वध, हत्या न होने वाली सदोष मानव वध की श्रेणी में आएगा।” महत्वपूर्ण मानसिक तत्व की व्याख्या करते हुए कोर्ट ने केसर सिंह के कथन को आगे उद्धृत किया: “यदि कोई चोट इस ज्ञान और आशय से पहुंचाई जाती है कि इससे मृत्यु होने की संभावना है लेकिन मृत्यु होने का कोई इरादा नहीं है तो अपराध IPC की धारा 304 भाग I की परिभाषा के अंतर्गत आएगा। हालांकि, यदि ऐसी चोट पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है लेकिन यह ज्ञान है कि ऐसी चोट से मृत्यु हो सकती है तो अपराध IPC की धारा 304 भाग II की परिभाषा के अंतर्गत आएगा। इस प्रकार, यह इरादा है। यदि ऐसी चोट पहुंचाने का इरादा, जिससे मृत्यु होने की संभावना है, सिद्ध हो जाता है तो अपराध भाग I के अंतर्गत आएगा, लेकिन जहां ऐसा कोई इरादा सिद्ध नहीं होता है और केवल यह ज्ञान है कि चोट से मृत्यु होने की संभावना है तो यह भाग II के अंतर्गत आएगा।”

मृत्यु तत्काल नहीं हुई अदालत ने एक और पहलू पर गौर किया कि मृत्यु तत्काल नहीं हुई थी, बल्कि एक सप्ताह बाद सेप्टिक स्थिति के कारण हुई, जिससे यह निष्कर्ष निकला कि मृत्यु जानबूझकर नहीं हुई थी। अदालत ने कहा, “अपीलकर्ता द्वारा किए गए अपराध की प्रकृति का आकलन करने में अन्य प्रासंगिक पहलू यह थे कि चोटों के कारण मृतक की तत्काल मृत्यु नहीं हुई। इस प्रकार, अपीलकर्ता द्वारा किया गया हमला उसकी जानकारी में था, लेकिन उसकी मृत्यु का कारण बनने का कोई इरादा नहीं था। बेशक, मृतक की मृत्यु 13 दिन बाद हुई। न केवल अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हुई, बल्कि उसे लगी चोटों में सेप्टिक स्थिति भी विकसित हो गई। मृत्यु का कारण चिकित्सकीय रूप से 'सेप्टिसीमिया' बताया गया।” तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई और IPC की धारा 302 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा रद्द कर दी गई और उन्हें IPC की धारा 304, भाग I के तहत सजा में बदल दिया गया। अदालत ने आदेश दिया, "अपीलकर्ता द्वारा पहले ही काटी गई 14 साल की सज़ा पर्याप्त मानी जाएगी और न्याय के हित में होगी। अपीलकर्ता द्वारा ट्रायल कोर्ट में जमा किया गया ज़मानत बांड रद्द माना जाएगा।

 Cause Title: NANDKUMAR @ NANDU MANILAL MUDALIAR VERSUS STATE OF GUJARAT

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