कॉलेजियम प्रणाली न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है: जस्टिस सूर्यकांत
श्रीलंका के दौरे के दौरान, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Powers) का एक मजबूत उदाहरण है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में नियुक्तियों पर न्यायपालिका के नियंत्रण को इसका मुख्य उदाहरण बताया। जस्टिस सूर्यकांत ने श्रीलंका के सुप्रीम कोर्ट में “द लिविंग कॉन्स्टिट्यूशन: कैसे भारतीय न्यायपालिका संवैधानिकता को सुरक्षित करती है” विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि कालेगियम सिस्टम न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने में मदद करता है।
उन्होंने बताया कि संविधान निर्माताओं ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए सख्त सुरक्षा उपाय बनाए, जैसे वेतन, भत्ते, स्थानांतरण और नियुक्तियों पर नियंत्रण, जिससे कोई अन्य राज्य अंग हस्तक्षेप नहीं कर सकता। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि न्यायपालिका केवल विवादों का निपटारा नहीं करती, बल्कि समाज की लोकतांत्रिक कल्पना को आकार देती है। उन्होंने केसवनंद भारती मामला और शक्तियों के पृथक्करण व न्यायिक समीक्षा को संविधान की मूल संरचना के “पवित्र तत्व” करार दिया।
उन्होंने यह भी बताया कि अनुच्छेद 32 और 226 के तहत नागरिक सीधे सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय में राहत मांग सकते हैं। न्यायपालिका की व्याख्या से नए अधिकार भी मान्यता पाए हैं, जैसे शिक्षा का अधिकार, गोपनीयता, डिजिटल स्वतंत्रता, पर्यावरण संरक्षण, तेज मुकदमे का अधिकार और गरिमापूर्ण मृत्यु का अधिकार। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि न्यायपालिका की शक्ति नैतिक और बौद्धिक होती है, यह जनता के विश्वास पर आधारित है। उन्होंने अपने कई फैसलों का उदाहरण दिया, जिसमें पीड़ितों के अधिकारों को मजबूत किया गया। अंत में उन्होंने कहा कि भारत और श्रीलंका दोनों ने लोकतंत्र और न्याय के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती का सामना किया है। न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका की नैतिक चेतना के रूप में कार्य करती है और कमजोरों को संवैधानिक आधार पर सशक्त बनाती है। उन्होंने उम्मीद जताई कि दोनों देशों की न्यायपालिकाओं के बीच संवाद न्याय, स्वतंत्रता और गरिमा के आदर्शों को मजबूत करेगा।
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