साझा उद्देश्य के लिए दान की गई मगर अप्रयुक्त भूमि मालिकों को लौटाई जानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा

Sep 17, 2025 - 10:05
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साझा उद्देश्य के लिए दान की गई मगर अप्रयुक्त भूमि मालिकों को लौटाई जानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा

हरियाणा के भूस्वामियों को राहत प्रदान करते हुए महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (16 सितंबर) को कहा कि पंचायतों में साझा उद्देश्यों के लिए निर्धारित भूमि के उपयोग के बाद बची हुई 'बचत भूमि' या अप्रयुक्त भूमि को मालिकों के बीच उस हिस्से के अनुसार पुनर्वितरित किया जाना चाहिए, जिसमें उन्होंने साझा उद्देश्यों के लिए अपनी भूमि दान की थी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस पीके मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के भूस्वामियों-स्वामियों के पक्ष में दिए गए फैसले की पुष्टि करते हुए कहा कि जब तक अप्रयुक्त/बचत भूमि को विशेष रूप से साझा उद्देश्यों के लिए आरक्षित नहीं किया जाता है और उसका कब्जा पंचायत को नहीं सौंप दिया जाता है, तब तक वह भूमि मालिकों की ही रहेगी।

हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखते हुए, जिसमें संविधान पीठ के भगत राम एवं अन्य बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य मामले (1967) 2 एससीआर 165 में इसी सिद्धांत का समर्थन करते हुए दिए गए फैसले पर भरोसा किया गया। सीजेआई गवई द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया: “इन सभी निर्णयों में यह माना गया कि चकबंदी योजना के तहत निर्धारित सामान्य उद्देश्यों के लिए भूमि का उपयोग करने के बाद जो भूमि अनुपयोगी रह जाती है, वह भूमि स्वामी की होती है, ग्राम पंचायत की नहीं। आगे यह भी माना गया कि सामान्य उद्देश्यों के लिए निर्धारित भूमि का उपयोग करने के बाद बची अनुपयोगी भूमि, अर्थात् बचत भूमि, स्वामी के बीच उस हिस्से के अनुसार पुनर्वितरित की जानी चाहिए, जिसमें उन्होंने सामान्य उद्देश्यों के लिए अपनी भूमि का योगदान दिया था।”

अदालत ने आगे कहा, “इसलिए हमें यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि हाईकोर्ट की फुल बेंच के विवादित निर्णय और अंतिम आदेश में इस सीमा तक कोई त्रुटि नहीं पाई जा सकती कि जो भूमि किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए निर्धारित नहीं की गई, वह ग्राम पंचायत या राज्य में निहित नहीं है।” संक्षेप में मामला पूर्वी पंजाब जोत (चकबंदी एवं विखंडन निवारण) अधिनियम, 1948 के तहत चकबंदी के दौरान, ग्रामीणों को सड़क, स्कूल या चारागाह जैसे सामान्य उद्देश्यों के लिए भूमि का एक पूल बनाने हेतु अपनी जोत का कुछ हिस्सा दान करना आवश्यक था। 1992 में हरियाणा सरकार ने पंजाब ग्राम साझा भूमि (विनियमन) अधिनियम, 1961 में संशोधन किया, जिसमें शमिलात देह की परिभाषा का विस्तार करते हुए ऐसी दान की गई भूमि को भी शामिल किया गया। 'शमिलात देह' उस भूमि को संदर्भित करता है, जो व्यक्तिगत स्वामियों के बजाय सामूहिक रूप से ग्राम समुदाय की होती है।

भूस्वामियों ने इस संशोधन को चुनौती दी और तर्क दिया कि यह बिना मुआवजे के अप्रयुक्त भूमि को हड़पने का एक गुप्त प्रयास है। हाईकोर्ट के निर्णय की पुष्टि करते हुए अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पंचायत द्वारा बचत भूमि के उपयोग के लिए दो वैधानिक शर्तें पूरी होनी चाहिए, अर्थात, भूमि चकबंदी योजना में स्पष्ट रूप से आरक्षित होनी चाहिए और कब्जा पंचायत को हस्तांतरित किया जाना चाहिए। चूंकि विवादित बचत भूमि किसी भी शर्त को पूरा नहीं करती, इसलिए अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि स्वामित्व स्वामियों के पास ही रहेगा।

अदालत ने स्टेयर डेसिसिस के सिद्धांत का भी हवाला दिया और कहा कि भगत राम मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हाईकोर्ट के सौ से ज़्यादा फैसलों ने बचत भूमि पर स्वामियों के अधिकारों को लगातार मान्यता दी। अदालत ने कहा कि दशकों बाद इस स्थापित स्थिति को बिगाड़ना कानूनी निश्चितता और निष्पक्षता को कमज़ोर करेगा। अदालत ने कहा, "हाईकोर्ट की फुल बेंच ने विवादित फैसले और वैकल्पिक रूप से अंतिम आदेश में यह माना कि पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा 100 से ज़्यादा फैसलों में एक सुसंगत दृष्टिकोण अपनाया गया और स्टेयर डेसिसिस के सिद्धांत को लागू करते हुए इस दृष्टिकोण को बदला नहीं जा सकता।" अदालत ने आगे कहा, "स्टेयर डेसिसिस का सिद्धांत कानूनी व्यवस्था में स्थिरता और पूर्वानुमेयता को महत्व देता है। यह अनिवार्य करता है कि अदालतों द्वारा लंबे समय तक लगातार अपनाए गए दृष्टिकोण का पालन किया जाना चाहिए, जब तक कि वह स्पष्ट रूप से गलत, अन्यायपूर्ण या शरारती न हो।" तदनुसार, हरियाणा राज्य की अपील खारिज कर दी गई। इससे पहले, 2022 में अदालत ने राज्य की अपील स्वीकार कर ली थी। हालांकि, पुनर्विचार के लिए निर्णय को वापस ले लिया गया और मामले की पुनः सुनवाई की गई।

Cause Title: THE STATE OF HARYANA VERSUS JAI SINGH AND OTHERS

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