परिवार के सदस्य द्वारा हिस्सा छोड़ने वाला दस्तावेज़ तुरंत लागू होता है; बिना रजिस्ट्री वाला पारिवारिक समझौता भी बंटवारा साबित करने के लिए मान्य है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (6 नवंबर) को यह स्पष्ट किया कि संयुक्त परिवार की संपत्ति में किसी सहभाजनकर्ता (coparcener) द्वारा किए गए पंजीकृत परित्याग विलेख (registered relinquishment deed), जिसके तहत वह अपना हिस्सा छोड़ देता है, तुरंत प्रभाव से लागू होता है, भले ही उसे आगे लागू करने की कोई प्रक्रिया न की गई हो। अदालत ने कहा, “यदि किसी सहभाजनकर्ता ने किसी प्रतिफल (consideration) के बदले में अपने अधिकारों का परित्याग किया है, तो वह विलेख तुरंत प्रभाव से उसके अधिकार समाप्त कर देता है। इसकी वैधता किसी आगे की कार्रवाई पर निर्भर नहीं करती।”
जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन.वी. अंजनिया की खंडपीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के निर्णयों को निरस्त कर दिया। निचली अदालतों ने अपीलकर्ता (Appellant) के पक्ष में दो भाइयों द्वारा किए गए पंजीकृत परित्याग विलेखों (relinquishment deeds) और 1972 में हुए पारिवारिक समझौते (Palupatti) के बावजूद संपत्ति को संयुक्त पारिवारिक संपत्ति मानते हुए सभी वारिसों में विभाजन का आदेश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों ने कानून का गलत प्रयोग किया और यह नजरअंदाज कर दिया कि पंजीकृत परित्याग विलेख (registered relinquishment deed) स्वयं में वैध होता है और इसे “लागू” करने की कोई अतिरिक्त शर्त नहीं होती। अदालत ने कहा, “ट्रायल कोर्ट ने इस विलेख को प्रभावी नहीं माना, यह कहते हुए कि इसे बाद की पलुपट्टी में उल्लेख नहीं किया गया और यह 'लागू' नहीं हुआ। दोनों ही कारण गलत हैं।” साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अपंजीकृत पारिवारिक समझौता (unregistered family settlement) को भले ही स्वामित्व (title) स्थापित करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, लेकिन यह सीमित (collateral) उद्देश्यों के लिए साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है — जैसे कि यह साबित करना कि परिवार में संयुक्त स्थिति समाप्त (severance of status) हो चुकी है, और सदस्य अपने-अपने हिस्से पर अलग-अलग कब्जे में हैं।
कोर्ट ने कहा, “हिन्दू कानून के तहत संयुक्त परिवार की स्थिति समाप्त करने के लिए केवल एक स्पष्ट और निर्विवाद घोषणा पर्याप्त होती है — चाहे वह लिखित हो या मौखिक। ऐसी लिखित घोषणा को इस उद्देश्य के लिए स्वीकार किया जा सकता है कि उससे परिवार के अलग होने और बाद की संपत्ति के कब्जे की प्रकृति सिद्ध हो सके।” “यदि पारिवारिक समझौता केवल यह दिखाने के लिए प्रस्तुत किया गया है कि पक्षकारों ने बाद में संपत्तियों का उपयोग और आनंद कैसे लिया, तो ऐसे दस्तावेज़ के लिए पंजीकरण आवश्यक नहीं है।”
अदालत ने “संयुक्त स्थिति समाप्त होने (severance of status)” और “भौतिक विभाजन (division by metes and bounds)” के बीच अंतर भी स्पष्ट किया। अदालत ने कहा कि केवल अलग होने की मंशा की स्पष्ट घोषणा से ही संयुक्त स्थिति समाप्त मानी जा सकती है, भले ही संपत्ति का भौतिक विभाजन न हुआ हो। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की यह गलती भी बताई कि उसने दस्तावेज़ को इसलिए अस्वीकार किया क्योंकि वह अपंजीकृत था और उस पर कार्य नहीं किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह दृष्टिकोण गलत था, क्योंकि दस्तावेज़ को सीमित प्रयोजन के लिए स्वीकार किया जा सकता है और पंजीकरण की आवश्यकता उस स्तर पर नहीं होती। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह इस निर्णय के अनुरूप अंतिम डिक्री (final decree) तैयार करे और संपत्तियों का सीमांकन (demarcation) “मेट्स एंड बाउंड्स (metes and bounds)” के आधार पर करे। कोर्ट ने कहा,“ट्रायल कोर्ट शेड्यूल A तथा शेड्यूल C की वस्तुओं (1 से 16) के हिस्सों का निर्धारण करे और शेड्यूल B तथा शेड्यूल C की वस्तु 17 में प्रतिवादी संख्या 5 और 6 के बराबर हिस्सों को अलग-अलग प्रभावी बनाए। शेड्यूल B या शेड्यूल C की वस्तु 17 से संबंधित कोई भी लंबित लेनदेन इन घोषणाओं के अधीन रहेगा और अंतिम डिक्री में उसी के अनुसार विचार किया जाएगा।” इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि पंजीकृत परित्याग विलेख (Registered Relinquishment Deed) तुरंत प्रभाव से लागू होता है और उसे “लागू” करने के लिए किसी अतिरिक्त कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है, जबकि अपंजीकृत पारिवारिक समझौता (Unregistered Family Settlement) सीमित प्रयोजनों के लिए वैध साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य हो सकता है।
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