पीड़ित मुआवज़ा मामलों में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्देश, सभी ट्रायल कोर्ट को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने पर जोर
अपराध पीड़ितों के अधिकारों को मज़बूती देने की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के सभी विशेष और सत्र न्यायालयों को निर्देश दिया है कि वे प्रत्येक पात्र मामले में पीड़ित मुआवज़ा के भुगतान के संबंध में स्पष्ट आदेश पारित करें। अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट्स द्वारा ऐसे निर्देश न दिए जाने के कारण पीड़ितों को मुआवज़ा प्राप्त करने में गंभीर बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने यह आदेश ज्योति प्रवीन खंडपासोले द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया। इस याचिका में पीड़ित मुआवज़ा योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन की मांग की गई थी।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह पाया कि अपराध के शिकार पीड़ितों को राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों (SLSA) से मुआवज़ा पाने में कठिनाइयाँ होती हैं, क्योंकि अधिकांश मामलों में ट्रायल कोर्ट्स अपराध की सजा या दोषसिद्धि के समय मुआवज़े के भुगतान से संबंधित कोई स्पष्ट निर्देश जारी नहीं करते। न्यायालय ने कहा, “पीड़ित मुआवज़ा वितरण में एक प्रमुख अवरोध यह है कि स्पेशल कोर्ट या सेशन कोर्ट पीड़ित को मुआवज़ा देने का निर्देश नहीं देते।"
अदालत ने यह भी कहा कि इस विषय में जजों और संबंधित संस्थाओं में जागरूकता की कमी देखी गई। समस्या के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि अब से सभी विशेष और सेशन कोर्ट प्रत्येक उपयुक्त मामले में पीड़ित मुआवज़ा संबंधी विशिष्ट आदेश जारी करें ताकि राज्य जिला या तालुका स्तर पर विधिक सेवा प्राधिकरण इसे शीघ्र लागू कर सकें। इसके साथ ही अदालत ने निर्देश दिया कि इस निर्णय की प्रति सभी हाईकोर्ट को भेजी जाए ताकि वे इसे प्रधान जिला जजों और स्पेशल जज तक प्रसारित करें।
आदेश में कहा गया, “सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल इस आदेश को राज्य न्यायिक अकादमियों के निदेशकों तक पहुँचाएं ताकि प्रशिक्षण के दौरान स्पेशल कोर्ट और सेशन कोर्ट के जजों को पीड़ित मुआवज़ा के भुगतान के पहलू पर विशेष रूप से जागरूक किया जा सके।” सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह निर्देश आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 357A भारत न्याय संहिता (BNSS) की धारा 396 तथा लैंगिक अपराधों से बालकों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम और उसके नियमों के अनुरूप है। इस आदेश को न्याय व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण सुधार माना जा रहा है जो न केवल पीड़ितों को न्याय दिलाने की प्रक्रिया को सशक्त करेगा बल्कि मुआवज़ा प्रणाली को अधिक संवेदनशील और उत्तरदायी बनाएगा।
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