महिलाओं के खिलाफ हो रही लगातार यौन हिंसा के मामलों से शर्मिंदा हुआ सुप्रीम कोर्ट, कहा- हमें शर्म आती है
सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई को मौखिक रूप से कहा कि महिलाओं पर हमले के लगातार मामलों को सुनकर उसे शर्म आती है, जिनमें हाल ही में महिलाओं को ज़िंदा जलाने की घटनाएं भी शामिल हैं। अदालत एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यौन अपराधों से महिलाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कानूनों के सख्त और समयबद्ध क्रियान्वयन की मांग की गई। सुप्रीम कोर्ट महिला वकील संघ द्वारा दायर यह रिट याचिका 'महिलाओं की सुरक्षा के लिए अखिल भारतीय सुरक्षा दिशानिर्देश, सुधार और उपाय' जारी करने की मांग करती है। इसमें सभी यौन अपराधियों को गिरफ्तारी के तुरंत बाद अनिवार्य रूप से रासायनिक बधियाकरण और फिर तत्काल पॉलीग्राफ़ या झूठ डिटेक्टर परीक्षण से गुजरने की अनुमति देकर कानूनों में बदलाव की भी मांग की गई।
याचिका में कहा गया, "यह भी आग्रह किया जाता है कि महिला और बाल पीड़ितों के साथ जघन्य बलात्कार और हत्या के मामलों में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 और भारतीय न्याय संहिता (BNS) धारा 63 के तहत प्रत्येक दोषी को आजीवन कारावास और स्थायी रूप से नपुंसक बनाने की सजा दी जाए। "राष्ट्रीय यौन अपराधी रजिस्ट्री" की तत्काल स्थापना की जानी चाहिए, जो सभी महिलाओं की आसान पहुंच के लिए ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर उपलब्ध हो ताकि वे ऐसे बार-बार यौन अपराधियों को आसानी से पहचान सकें। तदनुसार एहतियाती कदम उठा सकें, क्योंकि यह वर्तमान में केवल कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए ही उपलब्ध है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ के समक्ष सीनियर एडवोकेट महालक्ष्मी पावनी याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुईं। जब पावनी ने प्रस्तुत किया कि परसों ही एक लड़की को ज़िंदा जला दिया गया था तो जस्टिस कांत ने टिप्पणी की कि न्यायालय इन मुद्दों को लेकर समान रूप से चिंतित है। न्यायालय ने मामले की सुनवाई नहीं की, क्योंकि केंद्र द्वारा दायर प्रतिवाद रिकॉर्ड में नहीं था। मामले की सुनवाई गुरुवार को स्थगित करते हुए न्यायालय ने एडिशनल एडवोकेट जनरल ऐश्वर्या भाटी को सुझाव दिया कि केंद्र सरकार इसे प्रतिकूल मुकदमा न समझे और इस समस्या के दीर्घकालिक और अल्पकालिक दोनों समाधान खोजे।
जस्टिस कांत ने कहा, "बस संभावित समाधानों पर विचार करें, जो व्यापक निर्देश हैं जिन्हें प्रभावी ढंग से जारी किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हम जो प्रभाव छोड़ना चाहते हैं। वह वहां हो दूरदराज के इलाकों में बहुत से बेज़ुबान लोग हैं, देखें कि हम उनके लिए क्या कर सकते हैं। व्यापक प्रचार उनके लिए कारगर नहीं हो सकता आइए इन ज़मीनी हक़ीक़तों को स्वीकार करें। उनके लिए क्या उपाय है?" उन्होंने यह भी कहा कि जब त्रासदी होती है तभी लोग समाधान खोजने के लिए जागते हैं। यही व्यवस्था में स्वाभाविक रूप से ग़लत है।
जस्टिस कांत ने न्याय की पहुंच में अंतर को पाटने के लिए शिक्षित ग्रामीणों को पैरालीगल कार्यकर्ता नियुक्त करने का सुझाव दिया। उन्होंने ये सुझाव एडिशनल एडवोकेट जनरल भाटी के इस सुझाव की पृष्ठभूमि में दिए थे कि अब हर ज़िले में वन स्टॉप सेंटर हैं। जस्टिस कांत ने कहा कि अब गावों में पंचायत में महिला सरपंच के चुनाव के लिए आरक्षण है। उन्होंने पूछा कि ये महिलाएं पैरालीगल कार्यकर्ता की भूमिका भी क्यों नहीं निभा सकतीं? रिट याचिका में कहा गया कि बलात्कार कानूनों में 2013 की जेएस वर्मा समिति द्वारा किए गए बदलावों और संशोधनों के बावजूद उन्नाव बलात्कार कांड, कठुआ बलात्कार कांड, हाथरस सामूहिक बलात्कार कांड जैसी कुछ क्रूर बलात्कार की घटनाएं हुई हैं। आगे कहा गया, "याचिकाकर्ता माननीय न्यायालय से अनुरोध करता है कि वह हमारे देश में महिलाओं, बच्चों और थर्ड जेंडर के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए पैरेन्स पैट्रिया के सिद्धांत को लागू करे, जिसमें उनकी सुरक्षा और सुरक्षित वातावरण का अधिकार शामिल है... संसद में कड़े कानून हैं, लेकिन पुलिस और प्रशासनिक हितधारकों की अनिच्छा, भ्रष्टाचार और ढिलाई के कारण इन कानूनों का समय पर और प्रभावी कार्यान्वयन नहीं हो पाता और फिर अपराधियों में कोई डर नहीं रहता। यह आग्रह किया जाता है कि यह न्यायालय इन ज्वलंत मुद्दों का न्यायिक संज्ञान ले और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए इनके समयबद्ध कार्यान्वयन पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हुए सख्त दिशानिर्देश तैयार करे।"
केस टाइटल: सुप्रीम कोर्ट महिला वकील संघ बनाम भारत संघ एवं अन्य | डब्ल्यू.पी.(Crl.) संख्या 526/2024
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